Monday, August 29, 2011

अन्ना के आन्दोलन का सच: आंखे खोलो और खुद देख लो



धन्यबाद अनिल गुप्ता जी

    आप स्वयम विचार करिए ज़रा देखे अन्ना टीम द्वारा 16 अगस्त का अनशन जिन मांगों को लेकर किया गया था. उन मांगों पर आज हुए समझौते में कौन हारा कौन जीता इसका फैसला करिए?


पहली मांग थी : सरकार अपना कमजोर बिल वापस ले
नतीजा : सरकार ने बिल वापस नहीं लिया

दूसरी मांग थी : सरकार लोकपाल बिल के दायरे में प्रधान मंत्री को लाये
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं

तीसरी मांग थी : लोकपाल के दायरे में सांसद भी हों
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र नहीं

चौथी मांग थी : तीस अगस्त तक बिल संसद में पास हो
नतीजा : तीस अगस्त तो दूर सरकार ने कोई समय सीमा तक नहीं तय की कि वह बिल कब तक पास करवाएगी

पांचवीं मांग थी : बिल को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा जाए
नतीजा : स्टैंडिंग कमिटी के पास एक के बजाय पांच बिल भेजे गए हैं

छठी मांग थी : लोकपाल की नियुक्ति कमेटी में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम हो
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं

सातवीं मांग : जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 84 के तहत करा कर उसके पक्ष और विपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाए. नतीजा : चर्चा 184 के तहत नहीं हुई, ना ही वोटिंग हुई

उपरोक्त के अतिरिक्त तीन अन्य वह मांगें जिनका जिक्र सरकार ने अन्ना को आज दिए गए समझौते के पत्र में किया है वह हैं

(1)सिटिज़न चार्टर लागू करना

(2)निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना

(3)राज्यों में लोकायुक्तों कि नियुक्ति करना

Copy of the letter written by Manmohan Singh to Anna Hajare (English Translation):


Dear Anna Hazare Ji,
I thank you for your letter dated August 26.
As you know, Parliament today discussed Lokpal related issues. You would be happy to know that both the Houses of Parliament passed a resolution on the three points raised by you. According to this resolution, Parliament in principle agrees to the following three points:
1. Citizens' charter
2. Lower bureaucracy under Lokpal through appropriate mechanism
3. Establishment of Lokayukta in states
Parliament has also passed a resolution that further resolve to forward the proceedings of the House to the Standing Committee for its perusal while formulating its recommendations for a Lokpal Bill.
I hope that you will end your fast looking at the resolution passed and restore your health. We all wish for your good health.

Best wishes,
Yours sincerely
Manmohan Singh


प्रणब मुखर्जी द्वारा इस संदर्भ में बहश के बाद संसद में दिए गए बयान(जिसे भांड न्यूज चैनल प्रस्ताव कह रहे हैं ) में स्पष्ट कहा गया कि इन तीनों मांगों के सन्दर्भ में सदन के सदस्यों की भावनाओं से अवगत कराते हुए लोकपाल बिल में संविधान कि सीमाओं के अंदर इन तीन मांगों को शामिल करने पर विचार हेतु आप (लोकसभा अध्यक्ष) इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजें

आइये अब 16 अगस्त से पीछे की और चलते हैं

1. शीला शिक्षित की कुर्सी खतरे में पड़ी हुई थी, अजय माकन जी सबसे आगे थे मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में 

2. मनमोहन सिंह और "छि:-बे-दम-बरम" का नाम कनिमोझी द्वारा सार्वजनिक कर दिया गया था

3. गत 24 अगस्त को हुई पेशी में कनिमोझी ने साफ़ साफ़ कहा की मनमोहन सिंह और चिदंबरम ने ही Auction प्रक्रिया रुकवाई थी

4. महंगाई के ऊपर जोरदार बहस चल थी थी, हालांकि महंगाई के मुद्दे पर जो वोटिंग हुई वो किसी काम की रही 

5. 2G और राष्ट्र्मंडल खेलों के घोटालों के ऊपर भी संसद में जोरदार बवाल मचा हुआ था और कांग्रेस चारों खाने चित्त नजर रही थी 

कौन जीता..? कैसी जीत...? किसकी जीत...? 

देश 8 अप्रैल को जहां खड़ा था आज टीम अन्ना द्वारा किये गए कुटिल और कायर समझौते ने देश को उसी बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया है. जनता के विश्वास की सनसनीखेज सरेआम लूट को विजय के शर्मनाक शातिर नारों की आड़ में छुपाया जा रहा है. फैसला आप करें.

हम बात टीम अन्ना की कर रहे हैं.



Thursday, August 11, 2011

नेहरू की जगह नेता जी होते तो देश नही बंटता


मैं यह पूरे विश्वास मे साथ कह सकता हूँ कि इस देश का हर एक बुद्धिजीवी ये जान चुका है कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की इस देश को कितनी जरूरत है, आज प्रत्येक समझदार व्यक्ति ये कहता है कि अगर नेहरू की जगह नेता जी होते तो आज देश नही बंटा होता, और अगर देश नही बंटा होता तो इस देश की आंतकवाद जैसी विकराल समस्या का नमोनिशान न होता।

उदाहरण आपके सम्मुख है
24 जनवरी 2011 टाइम्स नेटवर्क
कोलकाता।। ' नेताजी सुभाषचंद्र बोस आज होते तो भारत के विकास की रफ्तार कई गुना तेज होती और हम चीन से आगे होते।' इन्फोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति का कुछ यही मानना है।

नायारण मूर्ति के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू की उद्योगों को न पनपने देने की नीतियों और लाइसेंसी राज के खिलाफ नेताजी बेहद सक्षम साबित होते। नेताजी होते तो शायद भारत का विभाजन भी नहीं हुआ होता। नारायण मूर्ति ने कोलकाता में नेताजी मेमॉरियल ओरिएंटेशन के दौरान यह बात कही। 
सॉफ्टवेयर गुरु मूर्ति ने कहा कि केंद्र नेताजी को उचित सम्मान नहीं दे रहा है। मूर्ति ने कहा कि आजादी के बाद नेताजी होते तो भारत कुछ अलग देश होता। नेताजी, नेहरू, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, और सी. राजगोपालाचारी की टीम अगर एक साथ मिलकर काम करती तो भारत के लिए चमत्कार कर सकती थी।
भारत आज वहां होता, जहां चीन खड़ा है। नेताजी कद्दावर थे। नेताजी ही वह शख्स थे, जिन्होंने महात्मा गांधी से असहमत होने का साहस दिखाया था।
    
       “नेताजी ही वह शख्स थे, जिन्होंने महात्मा गांधी से असहमत होने का साहस दिखाया था”, और किसी मे इतनी हिम्मत नही थी, वाक्यांश एक ओर नेहरू और दूसरे नरम दल वाले नेताओं की बुजदली और सत्तालोलुपता दिखाता है और दूसरी तरफ़ गाँधी का महात्म्य युक्त आंतक।

नेता जी की मौत, एक हादसा या हत्या


     ये रहस्य मैं सुलझाने नही जा रहा हूँ, आपको केवल हमारी सरकारों के तथाकथित प्रयासों से अवगत कराने की कोशिश मात्र है, पुन: मैं एक समाचार पत्र के टुकडे आप तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा हूँ। जय हिन्द।

23 जनवरी 2009 नवभारत टाइम्स
     नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत कब और कैसे हुई - यह आज तक रहस्य बना हुआ है। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए तीन आयोग गठित हुए, तीनों ने अपनी रिपोर्ट भी सौंपी, लेकिन मिस्ट्री अब भी बरकरार है। इस रहस्य की तह तक जाने में जुटे लोगों का कहना है कि सरकार इसे लेकर कतई गंभीर नहीं है और न ही सरकार ने इसे सुलझाने में मुखर्जी कमिशन की मदद की। बावजूद इसके इन लोगों को भरोसा है कि एक न एक दिन सच सामने आएगा। इसी सच को जानने के लिए आरटीआई का सहारा लिया जा रहा है, ताकि नेताजी की मौत से जुड़े कागजात के सहारे सचाई को सामने लाया जा सके।

मौत की मिस्ट्री
नेताजी के बारे में कहा जाता रहा है कि उनकी मौत 18 अगस्त 1945 को ताइपे में एक प्लेन क्रेश में हुई। लेकिन, बाद में इस पर कई सवाल उठने लगे। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए 1956 में शाहनवाज कमिटी का गठन किया गया, जिसने ताइवान गए बिना ही सिर्फ जापान में कुछ लोगों से बात करके यह रिपोर्ट दे दी कि नेताजी की मौत प्लेन क्रेश में ही हुई थी। इस रिपोर्ट पर कमिटी में शामिल नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने कड़ी आपत्ति जताई। ज्यादातर सांसद भी इस रिपोर्ट से सहमत नहीं थे।

1970 में खोसला कमिशन का गठन किया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट में यही बात दोहराई। लेकिन 1978 में मोरारजी देसाई ने संसद में यह कहा कि कुछ ऐसे कागजात मौजूद हैं, जिनसे नेताजी की मौत प्लेन क्रेश में होने की बात स्वीकार नहीं की जा सकती। इसके बाद 1999 में मुखर्जी कमिशन ने इस गुत्थी को सुलझाने की जिम्मेदारी ली। कमिशन ने 2005 में अपनी रिपोर्ट में कहा कि नेताजी की मौत प्लेन क्रेश में नहीं हुई थी। ताइवान ऑथॉरिटी ने भी कहा कि 14 अगस्त से 20 सितंबर 1945 के बीच वहां कोई प्लेन क्रेश नहीं हुआ था। लेकिन आयोग यह बताने में सफल नहीं हो पाया कि नेताजी की मौत कब, कैसे और कहां हुई थी।

क्या छुपा रही है सरकार
मिशन नेताजी से जुड़े चंद्रचूड़ घोष कहते हैं कि सरकार इस गुत्थी को सुलझाने में कतई दिलचस्पी नहीं ले रही। मुखर्जी आयोग को भी पूरी मदद नहीं दी गई। जब नेताजी की मौत से जुड़ी कैबिनेट सेक्रेटरी लेवल की एक फाइल मांगी गई तो कहा गया कि वह नष्ट हो चुकी है। सरकार का कोई भी मंत्रालय कोई भी जानकारी नहीं दे रहा है। एक तरफ सरकार कह रही है कि वह कुछ नहीं छुपा रही है और दूसरी तरफ जानकारी मांगने पर सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन से कहा गया कि वे कागजात इतने संवेदनशील हैं कि अगर उन्हें रिलीज किया गया तो दूसरे देशों से हमारे रिलेशन खराब होंगे और आंतरिक शांति भंग होगी। यह भी कहा गया कि कागजात रिलीज होने पर पश्चिम बंगाल जल उठेगा। घोष कहते हैं कि हम चाहते हैं कि नेताजी से जुड़े जितने डॉक्युमेंट्स हैं वे पब्लिक के सामने आएं, सिटिजन इनक्वायरी हो और इस गुत्थी को सुलझाया जाए।

सच जानना है अधिकार
यूथ फॉर इक्वैलिटी भी मिशन नेताजी की मुहिम में साथ आ गया है। इसके अध्यक्ष डॉ. कौशल कांत मिश्रा का कहना है कि आरटीआई के जरिए हम सच की तह तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। नेताजी सुभाष क्रांति मंच के संयोजक वी. पी. सैनी कहते हैं कि यह हमेशा मिस्ट्री नहीं रह सकती। चाहे कितने भी संवेदनशील कागजात हों उन्हें रिलीज करना चाहिए ताकि पूरी साजिश का खुलासा हो सके। सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं दिख रही है इसलिए पब्लिक प्रेशर बनाना बेहद जरूरी है।
क्या विचार है आपके? और आप जो भी कर सकते हैं करने की कोशिश करें। ज़य हिन्द।


नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत


ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है कि हमारे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत कैसे हुई? मैं यहां कुछ नया कहने वाला नही हूँ, मेरी ये कोशिश केवल एक समाचार पत्र का एक टुकडा सुरक्षित करने की कोशिश मात्र है,  जय हिन्द।

11 अगस्त 2011 इन्डियाटाइम्स
     वाराणसी -- नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य को सुलझाने के लिए कई कमिटी और कमिशन बिठाए गए, कितनी किताबें लिखी गईं, लेकिन नेताजी के एक सहयोगी और प्रत्यक्षदर्शी से किसी ने कभी संपर्क नहीं किया।
     आजमगढ़ में इस्लामपुरा, बिलरियागंज में रहने वाले 107 साल के निजामुद्दीन खुद को आजाद हिंद फौज में नेताजीका ड्राइवर बताते हैं। निजामुद्दीन के मुताबिक उन्होंने 1942 में आजाद हिंद फौज जॉइन करने के बाद 4 साल नेताजी के साथ गुजारे।
     निजामुद्दीन को यकीन है कि नेताजी की मौत 1945 के प्लेन हादसे में नहीं हुई थी। निजामुद्दीन कहते हैं, ‘यह कैसे हो सकता है क्योंकि प्लेन हादसे के करीब 3-4 महीने बाद मैंने उन्हें कार से बर्मा और थाईलैंड की सीमा पर सितंगपुर नदी के किनारे छोड़ा था।

     निजामुद्दीन को इस बारे में कुछ भी पता नहीं कि जब उन्होंने नेताजी को नदी के किनारे छोड़ा, उसके बाद क्या हुआ। निजामुद्दीन के मुताबिक वह नेताजी के साथ ही रहना चाहते थे, लेकिन नेताजी ने उन्हें आजाद भारत में मिलने का वादा करके वापस भेज दिया था।
     करीब 10 साल बाद निजामुद्दीन की मुलाकात नेताजी के करीबी एक स्वामी से हुई थी। स्वामी नेताजी के संपर्क में थे। निजामुद्दीन के पास एक सर्टिफिकेट भी है जो आजाद हिंद फौज से उनका संबंध दिखाता है। इस सर्टिफिकेट से यह भी पता चलता है कि स्वामी का पूरा नाम एसवी स्वामी था और वह राहत और देश - प्रत्यावर्तन काउंसिल , पूर्व आजाद हिंद फौज और गठबंधन , रंगून के चेयरमैन थे। 1969 में निजामुद्दीन अपने परिवार के साथ भारत लौट आए।

ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है
Source : Indiatimes

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