अब रंगरूट भर्ती का काम शुरू हुआ । गाँधी ने एक महान ब्रिटिश राज्यभक्त की तरह यह काम बडे मनोयोग से शुरू किया । गाँधी ने खुद लिखा है –
“मेरी दूसरी जिम्मेदारी रंगरूट भर्ती करने की थी ।”
अब उसने अपने अहिंषा के शिद्धान्त को ताक पर रखकर तर्क वितर्क करके लोगो को शस्त्र धारण करने का उपदेश देना शुरु किया।
यह तो बस एक झलक थी गाँधी के अंग्रेज प्रेम की।