१९३७ से १९३९ तक मजदूरों और किसानों के संघर्षों ने बड़ा जोर पकड़ा। यहाँ कांग्रेस ने जमीदारों का पक्ष लेकर किसानों और मजदूरों पर गोलियां चलाई। अक्सर जगहों पर कारखानेदार और जमींदार हिन्दू और मजदूर, किसान ज्यादातर मुसलमान होते थे। इससे मुस्लिम लीग को यह कहने का मौका मिला कि हिन्दू कांग्रेस सरकार मुसलमानों पर जुल्म ढा रही है। आखिर हिन्दू-मुस्लिम जनता का इस हद तक बंटवारा हो गया कि मुस्लिम लीग अपने १९४० के लाहौर अधिवेशन में पकिस्तान का प्रस्ताव पास करवाने में सफल हो गयी।
इसके बाद भी जिन्ना ने यह नहीं सोचा था की देश का बंटवारा होगा। वह तो प्रस्ताव का दबाब डालकर मुसलमानों के लिए कुछ ज्यादा नुमाइंदगी और कुछ ज्यादा रियायतें हासिल कर लेना चाहता था। अगर उसने वाकई बंटवारा चाह होता तो वह १९४५ में अपने पुराने बंगले को नया करवाने में २-३ लाख रुपये कभी खर्च न करता।
आमतौर पर लोग विभाजन के लिए जिन्ना या मुस्लिम लीग को जिम्मेदार ठहराते हैं। ऐसा सोचते समय वो गाँधी और कांग्रेस के चरित्र को भूल जाते हैं।
गाँधी ने यह भी कहा था की पकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा और जब बन गया तो इसकी सारी जिम्मेदारी कांग्रेस और जिन्ना की जिद पर डाल दी। भला सोचिये, जब माउन्टबेटन और जिन्ना से समझौते की बातचीत खुद गाँधी कर रहा था तो पकिस्तान देने का निर्णय करने वाले दूसरे कांग्रेसी कैसे हो गए? क्या गाँधी के बिना कांग्रेस द्वारा कोई निर्णय संभव था? फिर मजे की बात यह है कि इस टूटी फूटी सत्ता के हस्तांतरण को आज़ादी नाम देकर उसका श्रेय गाँधी को दिया गया और उसका ढिंढोरा पीटा गया।
देश का बंटवारा बड़ा ही घृणित अपराध था, उसका दंड असली अपराधी को मिलना ही चाहिए था और वह मिला। नाथूराम गोडसे ने ३० जनवरी, १९४८ को बंटवारे के लगभग ५ महीने बाद, विडला भवन में गाँधी की हत्या कर दी और उसने दिलेरी से ऐलान किया - "कि मैं नहीं चाहता था कि यह व्यक्ति नैसर्गिक मौत मरे, मैं उसकी हत्या करके इतिहास में प्रश्न चिह्न लगा देना चाहता था।"
प्रश्न चिह्न लगा, जो दिन दिन गहरा और बड़ा होता जा रहा है।
हमारा विश्वास है कि एक दिन भारत फिर से एक राष्ट्र होगा, सभी धर्मों को एक साथ सहेजे हुए।
जय स्वदेश।
From : Gandhi Benaqaab By Hansraaj Rahbar