Saturday, September 10, 2011

देश के बंटवारे का जिम्मेदार


१९३७ से १९३९ तक मजदूरों और किसानों के संघर्षों ने बड़ा जोर पकड़ा। यहाँ कांग्रेस ने जमीदारों का पक्ष लेकर किसानों और मजदूरों पर गोलियां चलाई। अक्सर जगहों पर कारखानेदार और जमींदार हिन्दू और मजदूर, किसान ज्यादातर मुसलमान होते थे। इससे मुस्लिम लीग को यह कहने का मौका मिला कि हिन्दू कांग्रेस सरकार मुसलमानों पर जुल्म ढा रही है। आखिर हिन्दू-मुस्लिम जनता का इस हद तक बंटवारा हो गया कि मुस्लिम लीग अपने १९४० के लाहौर अधिवेशन में पकिस्तान का प्रस्ताव पास करवाने में सफल हो गयी।
इसके बाद भी जिन्ना ने यह नहीं सोचा था की देश का बंटवारा होगा। वह तो प्रस्ताव का दबाब डालकर मुसलमानों के लिए कुछ ज्यादा नुमाइंदगी और कुछ ज्यादा रियायतें हासिल कर लेना चाहता था। अगर उसने वाकई बंटवारा चाह होता तो वह १९४५ में अपने पुराने बंगले को नया करवाने में २-३ लाख रुपये कभी खर्च न करता।
आमतौर पर लोग विभाजन के लिए जिन्ना या मुस्लिम लीग को जिम्मेदार ठहराते हैं। ऐसा सोचते समय वो गाँधी और कांग्रेस के चरित्र को भूल जाते हैं।
गाँधी ने यह भी कहा था की पकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा और जब बन गया तो इसकी सारी जिम्मेदारी कांग्रेस और जिन्ना की जिद पर डाल दी। भला सोचिये, जब माउन्टबेटन और जिन्ना से समझौते की बातचीत खुद गाँधी कर रहा था तो पकिस्तान देने का निर्णय करने वाले दूसरे कांग्रेसी कैसे हो गए? क्या गाँधी के बिना कांग्रेस द्वारा कोई निर्णय संभव था? फिर मजे की बात यह है कि इस टूटी फूटी सत्ता के हस्तांतरण को आज़ादी नाम देकर उसका श्रेय गाँधी को दिया गया और उसका ढिंढोरा पीटा गया।

देश का बंटवारा बड़ा ही घृणित अपराध था, उसका दंड असली अपराधी को मिलना ही चाहिए था और वह मिला। नाथूराम गोडसे ने ३० जनवरी, १९४८ को बंटवारे के लगभग ५ महीने बाद, विडला भवन में गाँधी की हत्या कर दी और उसने दिलेरी से ऐलान किया - "कि मैं नहीं चाहता था कि यह व्यक्ति नैसर्गिक मौत मरे, मैं उसकी हत्या करके इतिहास में प्रश्न चिह्न लगा देना चाहता था।"
प्रश्न चिह्न लगा, जो दिन दिन गहरा और बड़ा होता जा रहा है।

हमारा विश्वास है कि एक दिन भारत फिर से एक राष्ट्र होगा, सभी धर्मों को एक साथ सहेजे हुए।

जय स्वदेश।
From : Gandhi Benaqaab By Hansraaj Rahbar

Friday, September 2, 2011

12 RTI activists have been killed


At least 12 Right to Information (RTI) activists have been killed in the line of duty since last year - the latest victim being Shehla Masood of Bhopal whose death has raised a huge furore - a report said Friday.
Titled 'RTI Activists: Sitting ducks of India', the report by the Asian Centre for Human Rights (ACHR) said that from Jan 2010 to Aug 2011, at least 12 activists including Masood were killed for seeking information to "promote transparency and accountability in the working of every public authority" in India.
Anti-corruption campaigner Masood was shot in the neck in her car outside her home in the Koh-e-Fiza area of Bhopal Aug 16 morning. Her murder shocked Madhya Pradesh and RTI activists across India.
Home Minister P. Chidambaram hinted at a Central Bureau of Investigation (CBI) probe into her murder.

"Even a policeman (or auxilliary to the police) could not escape death for seeking information under the Right to Information Act, 2005. On July 25, 2010, Babbu Singh of Uttar Pradesh Home Guard was killed allegedly for seeking information about government funds and work done by his village Pradhan at Katghar village in Uttar Pradesh," Suhas Chakma of ACHR said.
"Many face serious physical assaults on a regular basis. Those who seek information from their village panchayat and other local administration also face social ostracisation. Attacks on RTI activists do not make news (anymore)," he added.
According to Chakma, RTI activists are among the most vulnerable human rights defenders.
The report recommends that the government should amend the RTI Act and a separate chapter on protection of those seeking information should be inserted.

सच बोलना तो गुनाह हो ही गया था और अब सच जानना भी गुनाह हो गया।
Jai Hind

लिखिए अपनी भाषा में