Tuesday, December 6, 2011

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (2): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (2)
देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख 

स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे

क्रमश:


ऐतिहासिक निर्णय

भारत सरकार की ओर से महाधिवक्ता एम.सी.सीतलवाड़सी.के.दफ्तरीअतिरिक्त महाधिवक्ता एच.एन.सान्याल तथा जी.एन.जोशीआर.एच.ढेबरटी.एम.सेन सहित अनेक ख्यातिनाम वरिष्ठ अधिवक्ता नेहरू सरकार के निर्णय तथा नेहरू-नून समझौते की वैधानिकता की पैरवी कर रहे थे। नेहरू सरकार की ओर से बोलने वाले इन सभी अधिवक्ताओं का मत था कि यह मात्र एक सीमा विवाद है और इस विवाद के निपटारे के लिए यदि कुछ भूमि ली या दी जा रही है तो यह भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र का ही विषय हैइसके लिए संविधान में संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है। सभी विद्वान न्यायाधीशों ने बहुत धैर्यपूर्वक सरकार के तर्कों को सुना और अंत में सर्वोच्च न्यायालय के आठों न्यायाधीशों ने 14 मार्च, 1960 को सर्व सम्मति से अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि, 'नेहरू-नून समझौता (1958) के अनुसार यह स्पष्ट है कि, 'यद्यपि बेरूबाड़ी यूनियन-12 का सम्पूर्ण क्षेत्र भारत संघ का एक भाग है किंतु भारत सरकार इसका आधा भाग पाकिस्तान को देने के लिए इस भावना से तैयार हुई है कि अब दोनों देशों के मध्य मित्रतापूर्ण संबंध बने रहेंगे और आपस का तनाव भी समाप्त हो सकेगा (सर्वोच्च न्यायालयएआईआर-1960, पैरा 19) सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि, 'हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि यह केवल एक सीमा विवाद का निपटारा हैवरन यह एक ऐसा समझौता है जिसके कारण भारत की अपनी भूमि का एक भाग पाकिस्तान को दे दिया जाएगा। हमारे सामने यही प्रश्न था कि हम यह देखें कि क्या यह केवल एक सीमा विवाद है अथवा इस समझौते के कारण भारत की भूमि का कोई हिस्सा भारत से अलग होकर दूसरे देश को चला जायेगा?' (वहीपैरा 22) 'जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि 'रेडक्लिफ अवार्डकी घोषणा के बाद से ही 'बेरूबाड़ी यूनियन-12' भारत के साथ रहा है और तब से लगातार पश्चिम बंगाल का भाग बना हुआ है। इस वास्तविक स्थिति के प्रकाश में यह पूरी तरह स्पष्ट है कि संविधान लागू होते समय से लेकर अभी तक यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल प्रांत की सीमाओं के अंदर ही रखा गया है। अत: इस समझौते के लागू होने के परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल प्रांत की सीमाएं निश्चित रूप से परिवर्तित हो जाएंगी और भारतीय संविधान के प्रथम अनुच्छेद की 13वीं अनुसूची की मौलिक बातें भी अवश्य प्रभावित होंगी।' (वहीपैरा 24)
सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा, 'इस समझौते के कारण निश्चित रूप से भारत संघ अपनी भूमि दूसरे देश (पाकिस्तान) को दे रहा है। अत:हमारा निष्कर्ष यह है कि भारतीय भूमि के किसी दूसरे देश को हस्तांतरण के इस समझौते के लिए आवश्यक कानून बनाना अनिवार्य होगा और उसके लिए भारतीय संविधान की धारा 368 के अन्तर्गत संविधान में संशोधन करना भी आवश्यक है। इस संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों में उपस्थित संख्या का 2/3 बहुमत तथा देश की सभी विधानसभाओं में से 50 प्रतिशत विधानसभाओं का समर्थन भी इसके लिए आवश्यक होगा।' (वहीपैरा 44-45) 'हम पहले ही कह चुके हैं कि इस समझौते के कारण भारत अपनी भूमि का एक हिस्सा पाकिस्तान को दे देगाइस कारण भारत संघ की भूमि का एक भाग निश्चित रूप से कम हो जाएगा। अत: इस समझौते को लागू करने के लिए तथा बेरूबाड़ी यूनियन-12 तथा कूच बिहार के कुछ एन्क्लेव्स को पाकिस्तान को देने के लिए भारतीय संविधान की धारा-368 के अंतर्गत संविधान में संशोधन करना ही होगा।' (वहीपैरा 46)। निष्कर्ष यह है कि यदि देश का कोई भी हिस्सा किसी दूसरे देश को दिया जाएगा तो यह कार्य संविधान की धारा 368 के द्वारा संविधान में परिवर्तन करने के बाद ही संभव हो सकेगा।

क्रमश:

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (1): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (1)
देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख 

स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM


देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान के अनुच्छेद 143(1)के अन्तर्गत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस प्रश्न को रखा और राय जाननी चाही कि, 'क्या भारत सरकार संविधान में बिना संशोधन किये भारत संघ की भूमि को किसी अन्य देश को दे सकती है?' सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रश्न को अति महत्वपूर्ण मानते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.पी.सिन्हा की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति- एस.के.दास, पी.बी.राजेन्द्र गडकर, ए.के.सरकार, के.सुब्बाराव, एम.हिदायतुल्ला, के.सी. दासगुप्ता तथा जे.सी.शाह की एक संयुक्त संवैधानिक पीठ गठित कर दी। आठ विद्वान न्यायाधीशों के सम्मुख इस विषय पर अपना पक्ष रखने के लिए भारतीय जनसंघ के सात प्रमुख नेताओं सहित कुछ अन्य लोगों को अनुमति दी, जिन्होंने इस संदर्भ में याचिका दी थी। इनके नाम हैं- 1-अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ, केरल, 2- सचिव जनसंघ, मंडी, 3- टाटा श्रीराममूर्ति, अ.भा.जनसंघ, विशाखापट्टनम, 4-अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ, मंगलौर, 5-सचिव, भारतीय जनसंघ, सीतापुर, 6-श्री एन.थम्बन् नाम्बियार, भारतीय जनसंघ, तालीपरम्बु, 7-अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ, पट्टाम्बि (कोचीन) सहित रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (जलपाईगुड़ी) के सचिव, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक (कलकत्ता) के सचिव एवं जलपाईगुड़ी के निर्मल बोस। इन सभी आवेदनकर्त्ताओं ने भारतीय भूमि के इस प्रकार किसी दूसरे देश को स्थानांतरण करने का विरोध करते हुए अपना पक्ष रखा। विद्वान न्यायाधीशों ने सरकार के सभी पक्षों तथा जनसंघ के सात पक्षकारों सहित तीन अन्य प्रार्थियों के विचारों को भी गंभीरता के साथ सुना। स्मरण रहे कि उस समय नेहरू-नून समझौते के दूरगामी दुष्परिणामों को ध्यान में रखकर भारतीय जनसंघ के कार्यकर्त्ता देशव्यापी आंदोलन चला रहे थे। 'बेरूबाड़ी देबो ना, देबो ना,' के नारे सारे देश में गूंज रहे थे। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने ही भारतीय जनसंघ के सात प्रमुख कार्यकर्त्ताओं को सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखने के लिए प्रेरित किया था और देश के प्रमुख अधिवक्ताओं को तैयार करके इस विषय की पैरवी सर्वोच्च न्यायालय में करवायी थी।

क्रमश:

Saturday, September 10, 2011

देश के बंटवारे का जिम्मेदार


१९३७ से १९३९ तक मजदूरों और किसानों के संघर्षों ने बड़ा जोर पकड़ा। यहाँ कांग्रेस ने जमीदारों का पक्ष लेकर किसानों और मजदूरों पर गोलियां चलाई। अक्सर जगहों पर कारखानेदार और जमींदार हिन्दू और मजदूर, किसान ज्यादातर मुसलमान होते थे। इससे मुस्लिम लीग को यह कहने का मौका मिला कि हिन्दू कांग्रेस सरकार मुसलमानों पर जुल्म ढा रही है। आखिर हिन्दू-मुस्लिम जनता का इस हद तक बंटवारा हो गया कि मुस्लिम लीग अपने १९४० के लाहौर अधिवेशन में पकिस्तान का प्रस्ताव पास करवाने में सफल हो गयी।
इसके बाद भी जिन्ना ने यह नहीं सोचा था की देश का बंटवारा होगा। वह तो प्रस्ताव का दबाब डालकर मुसलमानों के लिए कुछ ज्यादा नुमाइंदगी और कुछ ज्यादा रियायतें हासिल कर लेना चाहता था। अगर उसने वाकई बंटवारा चाह होता तो वह १९४५ में अपने पुराने बंगले को नया करवाने में २-३ लाख रुपये कभी खर्च न करता।
आमतौर पर लोग विभाजन के लिए जिन्ना या मुस्लिम लीग को जिम्मेदार ठहराते हैं। ऐसा सोचते समय वो गाँधी और कांग्रेस के चरित्र को भूल जाते हैं।
गाँधी ने यह भी कहा था की पकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा और जब बन गया तो इसकी सारी जिम्मेदारी कांग्रेस और जिन्ना की जिद पर डाल दी। भला सोचिये, जब माउन्टबेटन और जिन्ना से समझौते की बातचीत खुद गाँधी कर रहा था तो पकिस्तान देने का निर्णय करने वाले दूसरे कांग्रेसी कैसे हो गए? क्या गाँधी के बिना कांग्रेस द्वारा कोई निर्णय संभव था? फिर मजे की बात यह है कि इस टूटी फूटी सत्ता के हस्तांतरण को आज़ादी नाम देकर उसका श्रेय गाँधी को दिया गया और उसका ढिंढोरा पीटा गया।

देश का बंटवारा बड़ा ही घृणित अपराध था, उसका दंड असली अपराधी को मिलना ही चाहिए था और वह मिला। नाथूराम गोडसे ने ३० जनवरी, १९४८ को बंटवारे के लगभग ५ महीने बाद, विडला भवन में गाँधी की हत्या कर दी और उसने दिलेरी से ऐलान किया - "कि मैं नहीं चाहता था कि यह व्यक्ति नैसर्गिक मौत मरे, मैं उसकी हत्या करके इतिहास में प्रश्न चिह्न लगा देना चाहता था।"
प्रश्न चिह्न लगा, जो दिन दिन गहरा और बड़ा होता जा रहा है।

हमारा विश्वास है कि एक दिन भारत फिर से एक राष्ट्र होगा, सभी धर्मों को एक साथ सहेजे हुए।

जय स्वदेश।
From : Gandhi Benaqaab By Hansraaj Rahbar

Friday, September 2, 2011

12 RTI activists have been killed


At least 12 Right to Information (RTI) activists have been killed in the line of duty since last year - the latest victim being Shehla Masood of Bhopal whose death has raised a huge furore - a report said Friday.
Titled 'RTI Activists: Sitting ducks of India', the report by the Asian Centre for Human Rights (ACHR) said that from Jan 2010 to Aug 2011, at least 12 activists including Masood were killed for seeking information to "promote transparency and accountability in the working of every public authority" in India.
Anti-corruption campaigner Masood was shot in the neck in her car outside her home in the Koh-e-Fiza area of Bhopal Aug 16 morning. Her murder shocked Madhya Pradesh and RTI activists across India.
Home Minister P. Chidambaram hinted at a Central Bureau of Investigation (CBI) probe into her murder.

"Even a policeman (or auxilliary to the police) could not escape death for seeking information under the Right to Information Act, 2005. On July 25, 2010, Babbu Singh of Uttar Pradesh Home Guard was killed allegedly for seeking information about government funds and work done by his village Pradhan at Katghar village in Uttar Pradesh," Suhas Chakma of ACHR said.
"Many face serious physical assaults on a regular basis. Those who seek information from their village panchayat and other local administration also face social ostracisation. Attacks on RTI activists do not make news (anymore)," he added.
According to Chakma, RTI activists are among the most vulnerable human rights defenders.
The report recommends that the government should amend the RTI Act and a separate chapter on protection of those seeking information should be inserted.

सच बोलना तो गुनाह हो ही गया था और अब सच जानना भी गुनाह हो गया।
Jai Hind

Monday, August 29, 2011

अन्ना के आन्दोलन का सच: आंखे खोलो और खुद देख लो



धन्यबाद अनिल गुप्ता जी

    आप स्वयम विचार करिए ज़रा देखे अन्ना टीम द्वारा 16 अगस्त का अनशन जिन मांगों को लेकर किया गया था. उन मांगों पर आज हुए समझौते में कौन हारा कौन जीता इसका फैसला करिए?


पहली मांग थी : सरकार अपना कमजोर बिल वापस ले
नतीजा : सरकार ने बिल वापस नहीं लिया

दूसरी मांग थी : सरकार लोकपाल बिल के दायरे में प्रधान मंत्री को लाये
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं

तीसरी मांग थी : लोकपाल के दायरे में सांसद भी हों
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र नहीं

चौथी मांग थी : तीस अगस्त तक बिल संसद में पास हो
नतीजा : तीस अगस्त तो दूर सरकार ने कोई समय सीमा तक नहीं तय की कि वह बिल कब तक पास करवाएगी

पांचवीं मांग थी : बिल को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा जाए
नतीजा : स्टैंडिंग कमिटी के पास एक के बजाय पांच बिल भेजे गए हैं

छठी मांग थी : लोकपाल की नियुक्ति कमेटी में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम हो
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं

सातवीं मांग : जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 84 के तहत करा कर उसके पक्ष और विपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाए. नतीजा : चर्चा 184 के तहत नहीं हुई, ना ही वोटिंग हुई

उपरोक्त के अतिरिक्त तीन अन्य वह मांगें जिनका जिक्र सरकार ने अन्ना को आज दिए गए समझौते के पत्र में किया है वह हैं

(1)सिटिज़न चार्टर लागू करना

(2)निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना

(3)राज्यों में लोकायुक्तों कि नियुक्ति करना

Copy of the letter written by Manmohan Singh to Anna Hajare (English Translation):


Dear Anna Hazare Ji,
I thank you for your letter dated August 26.
As you know, Parliament today discussed Lokpal related issues. You would be happy to know that both the Houses of Parliament passed a resolution on the three points raised by you. According to this resolution, Parliament in principle agrees to the following three points:
1. Citizens' charter
2. Lower bureaucracy under Lokpal through appropriate mechanism
3. Establishment of Lokayukta in states
Parliament has also passed a resolution that further resolve to forward the proceedings of the House to the Standing Committee for its perusal while formulating its recommendations for a Lokpal Bill.
I hope that you will end your fast looking at the resolution passed and restore your health. We all wish for your good health.

Best wishes,
Yours sincerely
Manmohan Singh


प्रणब मुखर्जी द्वारा इस संदर्भ में बहश के बाद संसद में दिए गए बयान(जिसे भांड न्यूज चैनल प्रस्ताव कह रहे हैं ) में स्पष्ट कहा गया कि इन तीनों मांगों के सन्दर्भ में सदन के सदस्यों की भावनाओं से अवगत कराते हुए लोकपाल बिल में संविधान कि सीमाओं के अंदर इन तीन मांगों को शामिल करने पर विचार हेतु आप (लोकसभा अध्यक्ष) इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजें

आइये अब 16 अगस्त से पीछे की और चलते हैं

1. शीला शिक्षित की कुर्सी खतरे में पड़ी हुई थी, अजय माकन जी सबसे आगे थे मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में 

2. मनमोहन सिंह और "छि:-बे-दम-बरम" का नाम कनिमोझी द्वारा सार्वजनिक कर दिया गया था

3. गत 24 अगस्त को हुई पेशी में कनिमोझी ने साफ़ साफ़ कहा की मनमोहन सिंह और चिदंबरम ने ही Auction प्रक्रिया रुकवाई थी

4. महंगाई के ऊपर जोरदार बहस चल थी थी, हालांकि महंगाई के मुद्दे पर जो वोटिंग हुई वो किसी काम की रही 

5. 2G और राष्ट्र्मंडल खेलों के घोटालों के ऊपर भी संसद में जोरदार बवाल मचा हुआ था और कांग्रेस चारों खाने चित्त नजर रही थी 

कौन जीता..? कैसी जीत...? किसकी जीत...? 

देश 8 अप्रैल को जहां खड़ा था आज टीम अन्ना द्वारा किये गए कुटिल और कायर समझौते ने देश को उसी बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया है. जनता के विश्वास की सनसनीखेज सरेआम लूट को विजय के शर्मनाक शातिर नारों की आड़ में छुपाया जा रहा है. फैसला आप करें.

हम बात टीम अन्ना की कर रहे हैं.



लिखिए अपनी भाषा में