Tuesday, December 6, 2011

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (1): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (1)
देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख 

स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM


देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान के अनुच्छेद 143(1)के अन्तर्गत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस प्रश्न को रखा और राय जाननी चाही कि, 'क्या भारत सरकार संविधान में बिना संशोधन किये भारत संघ की भूमि को किसी अन्य देश को दे सकती है?' सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रश्न को अति महत्वपूर्ण मानते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.पी.सिन्हा की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति- एस.के.दास, पी.बी.राजेन्द्र गडकर, ए.के.सरकार, के.सुब्बाराव, एम.हिदायतुल्ला, के.सी. दासगुप्ता तथा जे.सी.शाह की एक संयुक्त संवैधानिक पीठ गठित कर दी। आठ विद्वान न्यायाधीशों के सम्मुख इस विषय पर अपना पक्ष रखने के लिए भारतीय जनसंघ के सात प्रमुख नेताओं सहित कुछ अन्य लोगों को अनुमति दी, जिन्होंने इस संदर्भ में याचिका दी थी। इनके नाम हैं- 1-अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ, केरल, 2- सचिव जनसंघ, मंडी, 3- टाटा श्रीराममूर्ति, अ.भा.जनसंघ, विशाखापट्टनम, 4-अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ, मंगलौर, 5-सचिव, भारतीय जनसंघ, सीतापुर, 6-श्री एन.थम्बन् नाम्बियार, भारतीय जनसंघ, तालीपरम्बु, 7-अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ, पट्टाम्बि (कोचीन) सहित रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (जलपाईगुड़ी) के सचिव, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक (कलकत्ता) के सचिव एवं जलपाईगुड़ी के निर्मल बोस। इन सभी आवेदनकर्त्ताओं ने भारतीय भूमि के इस प्रकार किसी दूसरे देश को स्थानांतरण करने का विरोध करते हुए अपना पक्ष रखा। विद्वान न्यायाधीशों ने सरकार के सभी पक्षों तथा जनसंघ के सात पक्षकारों सहित तीन अन्य प्रार्थियों के विचारों को भी गंभीरता के साथ सुना। स्मरण रहे कि उस समय नेहरू-नून समझौते के दूरगामी दुष्परिणामों को ध्यान में रखकर भारतीय जनसंघ के कार्यकर्त्ता देशव्यापी आंदोलन चला रहे थे। 'बेरूबाड़ी देबो ना, देबो ना,' के नारे सारे देश में गूंज रहे थे। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने ही भारतीय जनसंघ के सात प्रमुख कार्यकर्त्ताओं को सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखने के लिए प्रेरित किया था और देश के प्रमुख अधिवक्ताओं को तैयार करके इस विषय की पैरवी सर्वोच्च न्यायालय में करवायी थी।

क्रमश:

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