सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (2)
देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
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स्रोत: Panchjanya - Weekly तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे
क्रमश:
ऐतिहासिक
निर्णय
भारत सरकार की ओर से महाधिवक्ता एम.सी.सीतलवाड़, सी.के.दफ्तरी, अतिरिक्त महाधिवक्ता एच.एन.सान्याल तथा जी.एन.जोशी, आर.एच.ढेबर, टी.एम.सेन सहित अनेक ख्यातिनाम
वरिष्ठ अधिवक्ता नेहरू सरकार के निर्णय तथा नेहरू-नून समझौते की वैधानिकता की
पैरवी कर रहे थे। नेहरू सरकार की ओर से बोलने वाले इन सभी अधिवक्ताओं का मत था कि
यह मात्र एक सीमा विवाद है और इस विवाद के निपटारे के लिए यदि कुछ भूमि ली या दी
जा रही है तो यह भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र का ही विषय है, इसके लिए संविधान में संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है। सभी विद्वान
न्यायाधीशों ने बहुत धैर्यपूर्वक सरकार के तर्कों को सुना और अंत में सर्वोच्च
न्यायालय के आठों न्यायाधीशों ने 14 मार्च,
1960 को सर्व सम्मति से अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि,
'नेहरू-नून समझौता (1958) के अनुसार यह
स्पष्ट है कि, 'यद्यपि बेरूबाड़ी यूनियन-12 का सम्पूर्ण क्षेत्र भारत संघ का एक भाग है किंतु भारत सरकार इसका आधा भाग
पाकिस्तान को देने के लिए इस भावना से तैयार हुई है कि अब दोनों देशों के मध्य
मित्रतापूर्ण संबंध बने रहेंगे और आपस का तनाव भी समाप्त हो सकेगा (सर्वोच्च
न्यायालय, एआईआर-1960, पैरा 19) सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि, 'हम इस बात से
सहमत नहीं हैं कि यह केवल एक सीमा विवाद का निपटारा है, वरन यह एक ऐसा समझौता है जिसके कारण भारत की अपनी भूमि का एक भाग
पाकिस्तान को दे दिया जाएगा। हमारे सामने यही प्रश्न था कि हम यह देखें कि क्या यह
केवल एक सीमा विवाद है अथवा इस समझौते के कारण भारत की भूमि का कोई हिस्सा भारत से
अलग होकर दूसरे देश को चला जायेगा?' (वही, पैरा 22) 'जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि 'रेडक्लिफ अवार्ड' की घोषणा के बाद से ही 'बेरूबाड़ी यूनियन-12' भारत के साथ रहा है और तब
से लगातार पश्चिम बंगाल का भाग बना हुआ है। इस वास्तविक स्थिति के प्रकाश में यह
पूरी तरह स्पष्ट है कि संविधान लागू होते समय से लेकर अभी तक यह क्षेत्र पश्चिम
बंगाल प्रांत की सीमाओं के अंदर ही रखा गया है। अत: इस समझौते के लागू होने के परिणामस्वरूप
पश्चिम बंगाल प्रांत की सीमाएं निश्चित रूप से परिवर्तित हो जाएंगी और भारतीय
संविधान के प्रथम अनुच्छेद की 13वीं अनुसूची की मौलिक
बातें भी अवश्य प्रभावित होंगी।' (वही, पैरा 24)
सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा, 'इस समझौते के कारण निश्चित रूप से भारत संघ
अपनी भूमि दूसरे देश (पाकिस्तान) को दे रहा है। अत:हमारा निष्कर्ष यह है कि भारतीय
भूमि के किसी दूसरे देश को हस्तांतरण के इस समझौते के लिए आवश्यक कानून बनाना
अनिवार्य होगा और उसके लिए भारतीय संविधान की धारा 368 के अन्तर्गत संविधान में संशोधन करना भी आवश्यक है। इस संशोधन के लिए संसद
के दोनों सदनों में उपस्थित संख्या का 2/3 बहुमत
तथा देश की सभी विधानसभाओं में से 50 प्रतिशत
विधानसभाओं का समर्थन भी इसके लिए आवश्यक होगा।' (वही, पैरा 44-45) 'हम पहले ही कह चुके हैं कि इस
समझौते के कारण भारत अपनी भूमि का एक हिस्सा पाकिस्तान को दे देगा, इस कारण भारत संघ की भूमि का एक भाग निश्चित रूप से कम हो जाएगा। अत: इस
समझौते को लागू करने के लिए तथा बेरूबाड़ी यूनियन-12 तथा
कूच बिहार के कुछ एन्क्लेव्स को पाकिस्तान को देने के लिए भारतीय संविधान की धारा-368 के अंतर्गत संविधान में संशोधन करना ही होगा।' (वही, पैरा 46)। निष्कर्ष यह है कि यदि देश का कोई भी
हिस्सा किसी दूसरे देश को दिया जाएगा तो यह कार्य संविधान की धारा 368 के द्वारा संविधान में परिवर्तन करने के बाद ही संभव हो सकेगा।
क्रमश: