अक्सर सुनने
को मिलता है कि आपातकाल में भारत सरकार ने जयपुर के पूर्व राजघराने पर छापे मारकर उनका
खजाना जब्त किया था, राजस्थान में यह खबर आम है कि - चूँकि जयपुर की महारानी गायत्री
देवी कांग्रेस व इंदिरा गांधी की विरोधी थी अत: आपातकाल में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी ने जयपुर राजपरिवार के सभी परिसरों पर छापे की कार्यवाही करवाई, जिनमें जयगढ़
का किला प्रमुख था, कहते कि राजा मानसिंह की अकबर के साथ संधि थी कि राजा मानसिंह अकबर
के सेनापति के रूप में जहाँ कहीं आक्रमण कर जीत हासिल करेंगे उस राज्य पर राज अकबर
होगा और उस राज्य के खजाने में मिला धन राजा मानसिंह का होगा| इसी कहानी के अनुसार
राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान सहित कई राज्यों पर जीत हासिल कर वहां से ढेर सारा धन
प्राप्त किया और उसे लाकर जयगढ़ के किले में रखा, कालांतर में इस अकूत खजाने को किले
में गाड़ दिया गया जिसे इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में सेना की मदद लेकर खुदाई कर गड़ा
खजाना निकलवा लिया|
यही आज से
कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी पर एक टेलीफिल्म
देखी थी उसमें में गायत्री देवी द्वारा इस सरकारी छापेमारी का जिक्र था साथ ही फिल्म
में तत्कालीन जयगढ़ किले के किलेदार को भी फिल्म में उस छापेमारी की चर्चा करते हुए
दिखाया गया| जिससे यह तो साफ़ है कि जयगढ़ के किले के साथ राजपरिवार के आवासीय परिसरों
पर छापेमारी की गयी थी|
जश्रुतियों
के अनुसार उस वक्त जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सील कर सेना के ट्रकों में भरकर
खजाने से निकाला धन दिल्ली ले जाया गया, लेकिन अधिकारिक तौर पर किसी को नहीं पता कि
इस कार्यवाही में सरकार के कौन कौन से विभाग शामिल थे और किले से खुदाई कर जब्त किया
गया धन कहाँ ले जाया गया|
चूँकि राजा
मानसिंह के इन सैनिक अभियानों व इस धन को संग्रह करने में हमारे भी कई पूर्वजों का
खून बहा था, साथ ही तत्कालीन राज्य की आम जनता का भी खून पसीना बहा था| इस धन को भारत
सरकार ने जब्त कर राजपरिवार से छीन लिया इसका हमें कोई दुःख नहीं, कोई दर्द नहीं, बल्कि
व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यह जनता के खून पसीने का धन था जो सरकारी खजाने
में चला गया और आगे देश की जनता के विकास में काम आयेगा| पर चूँकि अधिकारिक तौर पर
यह किसी को पता नहीं कि यह धन कितना था और अब कहाँ है ?
इसी जिज्ञासा
को दूर करने व जनहित में आम जनता को इस धन के बारे जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य
से पिछले माह मैंने एक RTI के माध्यम से गृह मंत्रालय से उपरोक्त खजाने से संबंधित
निम्न सवाल पूछ सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जबाब मांगे -
1- क्या आपातकाल
के दौरान केन्द्रीय सरकार द्वारा जयपुर रियासत के किलों, महलों पर छापामार कर सेना
द्वारा खुदाई कर रियासत कालीन खजाना निकाला गया था ? यही हाँ तो यह खजाना इस समय कहाँ
पर रखा गया है ?
2- क्या उपरोक्त
जब्त किये गए खजाने का कोई हिसाब भी रखा गया है ? और क्या इसका मूल्यांकन किया गया
था ? यदि मूल्यांकन किया गया था तो उपरोक्त खजाने में कितना क्या क्या था और है ?
3- उपरोक्त
जब्त खजाने की जब्त सम्पत्ति की यह जानकारी सरकार के किस किस विभाग को है?
4- इस समय
उस खजाने से जब्त की गयी सम्पत्ति पर किस संवैधानिक संस्था का या सरकारी विभाग का अधिकार
है?
5- वर्तमान
में जब्त की गयी उपरोक्त संपत्ति को संभालकर रखने की जिम्मेदारी किस संवैधानिक संस्था
के पास है?
6- उस संवैधानिक
संस्था या विभाग का का शीर्ष अधिकारी कौन है?
7- खजाने
की खुदाई कर इसे इकठ्ठा करने के लिए किन किन संवैधानिक संस्थाओ को शामिल किया गया और
ये सब कार्य किसके आदेश पर हुआ ?
8- इस संबंध
में भारत सरकार के किन किन जिम्मेदार तत्कालीन जन सेवकों से राय ली गयी थी?
मेरे उपरोक्त
प्रश्नों की RTI गृह मंत्रालय ने सूचना उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार,
जन पथ, नई दिल्ली के निदेशक को भेजी, जहाँ से मुझे जबाब आया कि –आप द्वारा मांगी गयी
सूचना राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध नहीं है| साथ इस विभाग ने कार्मिक प्रशिक्षण
विभाग द्वारा दिए गये दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए लिखा कि प्राधिकरण में उपलब्ध
सामग्री ही उपलब्ध कराई जा सकती है किसी आवेदक को कोई सूचना देने के लिए अनुसंधान कार्य
नहीं किया जा सकता|
जबकि मैंने
अपने प्रश्नों में ऐसी कोई जानकारी नहीं मांगी जिसमें किसी अनुसंधान की जरुरत हो, लेकिन
जिस तरह सरकार द्वारा सूचना मुहैया कराने के मामले में हाथ खड़े किये गये है उससे यह
शक गहरा गया कि उस वक्त जयपुर राजघराने से जब्त खजाना देश के खजाने में जमा ही नहीं
हुआ, यदि थोड़ा बहुत भी जमा होता तो कहीं तो कोई प्रविष्ठी मिलती या इस कार्यवाही का
कोई रिकोर्ड होता| पर किसी तरह का कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड नहीं होना दर्शाता है कि आपातकाल
में उपरोक्त खजाना तत्कालीन शासकों के निजी खजानों में गया है| और सीधा शक जाहिर कर
रहा कि उपरोक्त खोदा गया अकूत खजाना आपातकाल की आड़ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा
गाँधी ने खुर्द बुर्द कर स्विस बैंकों में भेज दिया जिसे सीधे सीधे जनता के धन पर डाका
है|
साथ ही यह
प्रश्न भी समझ से परे है कि इस संबंध में क्या जानकारी सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार
में ही हो सकती है ? किसी अन्य विभागों यथा आयकर आदि के पास नहीं हो सकती ? जबकि गृह
मंत्रालय ने मेरी RTI का जबाब देने को सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार को ही लिखा|
आप के पास
इस संबंध में कोई जानकारी हो, किसी अख़बार की उस वक्त छपी न्यूज की प्रति हो कृपया
मेरे साथ साँझा करें | साथ ही आरटीआई कार्यकर्त्ता इस संबंध में मार्गदर्शन करें कि
यह जानकारी प्राप्त करने के लिए किन किन विभागों में आरटीआई लगायी जाय तथा पहले लगायी
आरटीआई की अपील कैसे व कहाँ की जाय, आपकी सुविधा के लिए आरटीआई व उसके जबाब की प्रतियाँ
निम्न लिंक पर उपलब्ध है|
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