(यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो
भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है. इस लेख में उन्होंने ईश्वर
के प्रति अपनी धारणा और तर्कों को सामने रखा है. यहाँ इस लेख का कुछ हिस्सा
प्रकाशित किया जा रहा है.)
प्रत्येक मनुष्य को, जो विकास के लिए खड़ा है,
रूढ़िगत विश्वासों के हर पहलू की आलोचना तथा उन पर अविश्वास करना होगा और उनको
चुनौती देनी होगी. प्रत्येक प्रचलित मत की हर बात को हर कोने से तर्क की कसौटी पर
कसना होगा. यदि काफ़ी तर्क के बाद भी वह किसी सिद्धांत या दर्शन के प्रति प्रेरित
होता है, तो उसके विश्वास का स्वागत है. उसका तर्क असत्य, भ्रमित या छलावा और
कभी-कभी मिथ्या हो सकता है. लेकिन उसको सुधारा जा सकता है क्योंकि विवेक उसके जीवन
का दिशा-सूचक है. लेकिन निरा विश्वास और अंधविश्वास ख़तरनाक है. यह मस्तिष्क को
मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है. जो मनुष्य यथार्थवादी होने का
दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी. यदि वे तर्क का
प्रहार न सह सके तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे. तब उस व्यक्ति का पहला काम
होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नए दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ
करना. यह तो नकारात्मक पक्ष हुआ. इसके बाद सही कार्य शुरू होगा, जिसमें
पुनर्निर्माण के लिए पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग किया जा सकता है. जहाँ
तक मेरा संबंध है, मैं शुरू से ही मानता हूँ कि इस दिशा में मैं अभी कोई विशेष
अध्ययन नहीं कर पाया हूँ. एशियाई दर्शन को पढ़ने की मेरी बड़ी लालसा थी पर ऐसा
करने का मुझे कोई संयोग या अवसर नहीं मिला. लेकिन जहाँ तक इस विवाद के नकारात्मक
पक्ष की बात है, मैं प्राचीन विश्वासों के ठोसपन पर प्रश्न उठाने के संबंध में
आश्वस्त हूँ. मुझे पूरा विश्वास है कि एक चेतन, परम-आत्मा का, जो कि प्रकृति की
गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करती है, कोई अस्तित्व नहीं है.
हम प्रकृति में विश्वास करते हैं और समस्त प्रगति
का ध्येय मनुष्य द्वारा, अपनी सेवा के लिए, प्रकृति पर विजय पाना है. इसको दिशा
देने के लिए पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है. यही हमारा दर्शन है. जहाँ तक नकारात्मक
पहलू की बात है, हम आस्तिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं-(i) यदि, जैसा कि आपका
विश्वास है, एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञानी ईश्वर है जिसने कि पृथ्वी
या विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएं कि उसने यह रचना क्यों की? कष्टों
और आफतों से भरी इस दुनिया में असंख्य दुखों के शाश्वत और अनंत गठबंधनों से ग्रसित
एक भी प्राणी पूरी तरह सुखी नहीं. कृपया, यह न कहें कि यही उसका नियम है. यदि वह
किसी नियम में बँधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं. फिर तो वह भी हमारी ही तरह गुलाम
है. कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका शग़ल है. नीरो ने सिर्फ एक रोम जलाकर राख
किया था. उसने चंद लोगों की हत्या की थी. उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया, अपने
शौक और मनोरंजन के लिए. और उसका इतिहास में क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम
से बुलाते हैं? सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाए जाते हैं. जालिम, निर्दयी,
शैतान-जैसे शब्दों से नीरो की भर्त्सना में पृष्ठ-के पृष्ठ रंगे पड़े हैं. एक
चंगेज़ खाँ ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार ज़ानें ले लीं और आज हम उसके नाम से घृणा
करते हैं. तब फिर तुम उस सर्वशक्तिमान अनंत नीरो को जो हर दिन, हर घंटे और हर मिनट
असंख्य दुख देता रहा है और अभी भी दे रहा है, किस तरह न्यायोचित ठहराते हो? फिर
तुम उसके उन दुष्कर्मों की हिमायत कैसे करोगे, जो हर पल चंगेज़ के दुष्कर्मों को
भी मात दिए जा रहे हैं?
मैं पूछता हूँ कि उसने यह दुनिया बनाई ही क्यों
थी-ऐसी दुनिया जो सचमुच का नर्क है, अनंत और गहन वेदना का घर है? सर्वशक्तिमान ने
मनुष्य का सृजन क्यों किया जबकि उसके पास मनुष्य का सृजन न करने की ताक़त थी? इन
सब बातों का तुम्हारे पास क्या जवाब है? तुम यह कहोगे कि यह सब अगले जन्म में, इन
निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और ग़लती करने वालों को दंड देने के लिए हो
रहा है. ठीक है, ठीक है. तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे जो हमारे शरीर
को जख्मी करने का साहस इसलिए करता है कि बाद में इस पर बहुत कोमल तथा आरामदायक
मलहम लगाएगा? ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापकों तथा सहायकों का यह काम कहाँ तक
उचित था कि एक भूखे-खूँख्वार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि यदि वह उस जंगली
जानवर से बचकर अपनी जान बचा लेता है तो उसकी खूब देख-भाल की जाएगी? इसलिए मैं
पूछता हूँ, ‘‘उस परम चेतन और सर्वोच्च सत्ता ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों का
सृजन क्यों किया? आनंद लुटने के लिए? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क है?’’ मुसलमानों
और ईसाइयों. हिंदू-दर्शन के पास अभी और भी तर्क हो सकते हैं. मैं पूछता हूँ कि
तुम्हारे पास ऊपर पूछे गए प्रश्नों का क्या उत्तर है? तुम तो पूर्व जन्म में
विश्वास नहीं करते. तुम तो हिन्दुओं की तरह यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि
प्रत्यक्षतः निर्दोष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्व जन्मों के कुकर्मों का फल है. मैं
तुमसे पूछता हूँ कि उस सर्वशक्तिशाली ने विश्व की उत्पत्ति के लिए छः दिन मेहनत
क्यों की और यह क्यों कहा था कि सब ठीक है. उसे आज ही बुलाओ, उसे पिछला इतिहास
दिखाओ. उसे मौजूदा परिस्थितियों का अध्ययन करने दो. फिर हम देखेंगे कि क्या वह आज
भी यह कहने का साहस करता है- सब ठीक है.
'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...