अहमदाबाद के मज़दूरों के सत्याग्रह की तथाकथित सफ़लता के बाद गाँधी ने गुजरात के खेडा जिले का सत्याग्रह का काम हाथ में लिया । 1917 में अधिक बर्षा की वजह से खरीफ़ की फ़सल लगभग नष्ट हो गयी । रुपया मे तीन आने की भी आशा नहीं थी । इस जिले के किसान जागरुक थे वे कलेक्टर से मिले और कमिश्नर से भी अपील की । जब कहीं सुनवाई ना हुई तब वे मामला गाँधी के पास ले गये ।
गाँधी आया और उसने नाडियाड की अनाथशाला मे डेरा डाला । चिलचिलाती धूप मे उसके स्वंसेवकों से उसकी रिपोर्ट तैयार की । उसने रिपोर्ट देखकर अनुमान लगाया कि लोगों की माँग इतनी साफ़ और हल्की है कि उसके लिये किसी लडाई की जरूरत ही नही है । उसने सम्बन्धित अधिकारियों से प्रार्थना की । अधिकारियों ने उसकी एक ना सुनी तब उसने सत्याग्रह करने का निर्णय लिया ।
गाँधी ने एक बार फ़िर किसानों से एक प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर लिये जिसमे लिखा था –“हम नीचे सही करने वाले प्रतिज्ञा करते हैं कि हम सरकार का लगान अदा नहीं करेगें, पर उसे वसूल करने मे सरकार से होने वाली तकलीफ़ें बर्दाश्त करेगें । हम अपनी जमीन भी जब्त हो जाने देंगे पर लगान न देगें और यदि सरकार बची हुई दूसरी किस्त की वसूली सभी स्थानों पर माफ़ कर दे तो हममें से जो दे सकते हैं वे पूरा या बचा हुया बाकी लगान अदा करने को तैयार हैं।”
अर्थात गाँधी ने जिस तरह अहमदाबाद के मज़दूरों के हाथ पाँव बांधे थे उसी तरह यहाँ भी किसानों को अपंग कर दिया और अपने लिये भाग निकलने का चोर दरवाजा खुला रखा ।
तथाकथित सत्याग्रह शुरू हुया । सरकारी मशीनरी भी हरकत मे आई । किसानों की चल सम्पत्ति और जानवरों की कुर्की होने लगी । सरकार का दमन बढा तो आन्दोलन और उग्रतर होता गया । गाँधी ने इस पर प्रसन्न होने की वजाय खेद व्यक्त किया और उसने आन्दोलन रोक दिया ।
रोक देने का नतीजा यह हुया कि किसानो की हिम्मत टूट गयी । आखिर वे सरकारी दमन को कब तक चुपचाप सहते ? सरकार ने उनके जानवर बेंच डाले, घरों को लूट लिया, किसानों की सारी की सारी फ़सल कुर्क कर ली गयी । इससे लोगों मे घबराहट फ़ैली । किसानों ने लगान अदा कर दिया ।
स्वयं गाँधी के शब्दों में – “इस लडायी का अन्त विचित्र रीति से हुया । यह बात साफ़ थी कि लोग थक चुके थे और जो दृढ थे उन्हें अन्त तक बर्बाद होने में संकोच हो रहा था । मेरा झुकाव इस ओर था कि निबटारे का कोइ ऐसा राश्ता निकल आये जो सत्याग्रही को फ़बता हो, तो उसे स्वीकार करना चाहिये । उसी समय नाडियाड ताल्लुके के तहसीलदार ने कहला भेजा कि अगर स्थिति वाले पाटीदार (किसान) लगान अदा कर दें तो गरीबों का लगान मुल्तवी (माफ़) कर दिया जयेगा । इस बिषय में मैंने लिखित स्वीकृति माँगी, वह मिल गयी । तहसीलदार अपनी ही तहसील की जिम्मेदारी ले सकता था, सारे जिले की जिम्मेदारी तो कलेक्टर ही ले सकता है । अत: मैंने कलेक्टर से पूछा, उनका उत्तर आया कि तहसीलदार ने जैसा कहा है वैसा हुक्म तो निकल ही चुका है । प्रतिज्ञा मे यही खास चीज थी । इससे इस हुक्म से हमने सन्तोष माना ।”
देखा आपने फ़िर से गाँधी जीत गया, इसी को गाँधी की बडी जीत माना गया । ये तरीका था गाँधी की जीत का । और ये था इस सरकारी हुक्म का सच जिसे गाँधी की जीत समझा गया, गाँधी के ही शब्दों में – “गरीबों को छूट देने की बात थी, पर वो शायद ही बच पाये । गरीब कौन है ये कहने का अधिकार जनता ना अजमा सकी । जनता में यह शक्ति ना रह गयी थी, इसका मुझे दुख था ।”(आत्मकथा, पृ 530)
जिस गाँधी ने स्वयं शक्तिशाली, संगठित एवं जागरूक जनता को अपंग कर दिया, कमजोर कर दिया, बाद में उसी का रोना रोया और उसी जनता को कमजोर कहा । और वाह रे गाँधी, फ़िर अपनी इसी अपंग सफ़लता को महान बनाकर इसका गुणगान किया ।
From : Gandhi Benaqaab By Hansraaj Rahbar
Why I assassinated Mahatma Gandhi? -- Nathuraam Godse
bhai ji you are doing such a beautiful job....
ReplyDeletevastvikata se parichay hona har bharteey ke liye aavashyak hai ..
gandhi ke kukrityon par kuchh lekh mai bhi likhunga kintu abhi samay nahi mil pa raha hai...
kripaya ye abhiyan jari rakhen
aur koi padhe na padhe
mai to is blog ke har lekh ko padhunga
dhanyvaad
बस आप सबका आर्शिवाद बना रहे । बहुत बहुत धन्यबाद ।
ReplyDeletegandhi bhi ek ghtia rajnitik tha.... gandhi aur nehru ka kaam tha sirf satta hasil karna ....janta ke bare me na tab ke neta sochte tha na ab ka .... neeraj aap ka dhanyabad sach batane ke liye............bas lage raho..
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