ग़ाँधी के आहार के प्रयोग बहुत मशहूर हैं ; पर बहुत कम लोग इसका सच जानते हैं । इस सिलसिले मे इंदुलाल याज्ञिक लिखते हैं –
“मुझे तो उनके साथ जेल में रहने से पहले ही गाँधी जी के भोजन की मात्रा पर बडा विस्मय हुआ करता था । उदाहरण के लिये मैं यह देख आश्चर्यचकित रह जाता था कि जिन दिनों वह फ़लाहार करते थे उस समय वह अनगिनत केले और ढेर-सी मूँगफ़लियाँ खा डालते थे । नाडियाड मे किसान सत्याग्रह के अवसर पर मैं उन्हें इतनी रोटियाँ और इतनी बडी मात्रा मे दाल और चावल खाते देखता था कि मैं हैरान रह जाता था ।”
नाडियाड , गुजरात के खेडा जिले का ही एक स्थान हैं जहाँ गाँधी ने अपने तथाकथित अंपग जीत के झंडे बुलन्द किए । आपने पढा ही है हमारे इस ब्लोग मे “अहमदाबाद आन्दोलन 1918” कि कैसे अहमदाबाद के किसान अन्न के दाने दाने को तरस रहे थे और गाँधी अपने उपदेश झाड रहे थे ।
एक पेटु ब्राह्मण की बात सुनाकर गाँधी ने खुद ही कहा था –
“पर मुझे उस नादान ब्राह्मण पर हँसने का क्या अधिकार है, क्या मैं खुद खाने के मामले मे असंयम का अपराधी नहीं हूँ ? मैं खुद इतवार के व्रत की कसर पूरी करने के लिये अगली सुबह को दुगनी मात्रा मे खाना नहीं खा लेता ?” (गाँधीजी, पृ 211)
ग़ाँधी का जीवन कभी भी सामान्य व्यक्तियों की तरह भी संयमित नही रहा, चाहे ये उसके बचपन का समय हो जब उसने अपने मित्र के साथ माँस खाने से भी परहेज नहीं किया, चाहे उसका युवाकाल जब वो विलायत मे वकालत की पढाई करने गया और मदिरा के साथ साथ स्त्रीसंग से यथायुक्ति विरक्ति नही कर पाया और चाहे खाने के सम्बन्ध मे उसका जीवन देख लीजिए जिसमे वह कभी भी अपनी जिव्हा को अपन नियंत्रण में नही कर पाया ।
याज्ञिक जी गाँधी के साथ यरवदा जेल मे रहे थे, उन्होंने हमारे तथाकथित महात्मा के भोजन के बारे में असंयम की दिलचस्प घटनाएँ बयान की हैं । गाँधी ने खुद लिखा है –
“उस वक्त मेरी खुराक खासतौर से थी मूँगफ़ली गुड मिलाकर, केले इत्यादि फ़ल और दो-तीन नींबुओं का रस । मैं जानता था कि मूँगफ़ली ज्यादा खाने से नुकसान करती है । फ़िर भी वह ज्यादा खाई गईं । इससे मामूली पेचिश हो गयी ।”
इसी असंयमित जीवन का ही परिणाम था उसका गंदा स्वास्थ्य । ज़ीवन भर वो अपनी स्वादेंद्रिय की गुलामी करता रहा और इसी कारण से देश की पूर्ण स्वतंत्रता का स्वप्न भी कभी नही देख सका ।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जिन्होने सर्वप्रथम पूर्ण स्वराज्य की हुँकार की “स्वराज्य हमारा जन्मसिध्द अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगें ।”, तब इसी कमजोर गाँधी ने अंग्रेजो से डरकर हमारे गरम दल के नेताओं (लाला जी, तिलक जी और विपिनचन्द्र पाल जी) का विरोध किया ।
From : Gandhi Benaqaab By Hansraaj Rahbar
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