मुसलमान वोट पाने और अपने घोर विरोधी व गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए केंद्र सरकार जिस तरह से मजहबी आतंकवादियों की पैरोकार बनी हुई है, वह इस देश के लिए बेहद घातक है। केंद्र सरकार की संचालक कांग्रेस ने अपने पिट्ठू मीडिया हाउसों व बुद्धिजीवियों को भी इसका ठेका दे दिया है कि वह लगातार झूठ बोल-बोल कर इशरत जहां को 'संत इशरत' और इंटेलिजेंस ब्यूरो(IB) व गुजरात पुलिस को हैवान साबित करे, भले ही इससे देश की सुरक्षा दांव पर लगती हो! कट्टरपंथी मुसलमानों को भी यह रास आ रहा है....आखिर यह इस्लामी आतंकवाद को सरकारी स्वीकार्यता जो प्रदान करता है!
चलिए छोडि़ए, जरा उस इशरत जहां की पृष्ठभूमि पर गौर फरमा लें,
जिसकी जिंदगी यूपीए सरकार, कांग्रेस पार्टी, तहलका व एनडीटीवी जैसे मीडिया हाउसों,
सरकारी व अरब के फंड पर पलने वाले पालतू एनजीओ और अपने दिमाग को बेचकर पैसा कमाने
वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों लिए 'अनमोल' बन चुकी है!
1) गुजरात पुलिस के क्राइम ब्रांच ने 15 जून 2004 को एक मुठभेड़
में चार लोगों को मार गिराया था, जिनके नाम हैं- जीशन जौहर उर्फ अब्दुल गनी, अहमद
अली उर्फ सलीम, जावेद गुलाम शेख उर्फ प्रनेश कुमार पिल्लई और इशरत जहां। आरोप है
कि गुजरात पुलिस ने इन चारों को फर्जी मुठभेड़ में मारा था। वहीं गुजरात पुलिस का
पक्ष था कि उन्हें आईबी से यह सूचना मिली थी कि ये चारों लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी
हैं और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इसके अलावा ये लोग
गुजरात में जगह-जगह आतंकी हमले को अंजाम देना चाहते थे।
2) बाद में मारे गए व्यक्तियों में दो- जीशन जौहर व अहमद अली की
पहचान पाकिस्तानी नागरिक के रूप में हुई।
3) जीशन जौहर पाक अधिकृत कश्मीर से जम्मू-कश्मीर में घुसा था।
वहीं, अमजद अली को लश्कर-ए-तैयबा ने गुजरात व महाराष्ट्र में आतंकी हमले को
अंजाम देने के लिए सीधे पाकिस्तान से भारत के बॉर्डर में भेजा था।
4) तीसरा व्यक्ति जावेद उर्फ पिल्लई दुबई गया था, जहां लश्कर के
प्रभाव में आकर उसने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था और वह मुसलमान बन गया था।
5) लश्कर के इशारे पर जावेद व इशरत पति-पत्नी बनकर इत्र कारोबारी
के रूप में भारत के अंदर भ्रमण करते थे ताकि किसी को उन पर शक न हो। दोनों ने
साथ-साथ अहमदाबाद, लखनऊ व फैजाबाद जा कर महत्वपूर्ण स्थलों की रेकी की थी।
6) जो कांग्रेस संचालित यूपीए सरकार इशरत जहां को 'संत इशरत' साबित
करने के लिए उसके फर्जी मुठभेड़ की थ्योरी गढ़ रही है, उसी केंद्र सरकार ने
गुजरात हाईकोर्ट में यह हलफनामा दाखिल कर कहा था कि जावेद व इशरत आतंकवादी संगठन
लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य हैं।
7) 15 जून 2004 को इशरत सहित मुठभेड़ में चारों आतंकी मारे गए थे।
उसके अगले ही दिन पाकिस्तान के लाहौर से प्रकाशित लश्कर-ए-तैयबा के मुख पत्र '
गजवा टाइम्स' ने मारे गए आतंकियों को शहीद करार देते हुए लिखा था कि भारतीय पुलिस
ने लश्कर के चार सदस्यों को मार दिया। इसमें इशरत जहां का नाम भी शामिल था।
8) 24/11 को मुंबई हमले के मास्टर माइंड हेविड हेडली से पूछताछ के
दौरान अमेरिका के एफबीआई को जो सूचना मिली थी, उसने उसे भारत सरकार से साझा किया
था। अमेरिका द्वारा भारत सरकार को भेजे गए औपचारिक पत्र में लिखा था कि ' इशरत
जहां आत्मघाती दस्ते की महिला सदस्य थी, जिसे लश्कर ने भर्ती किया था।' एफबीआई
ने उस पत्र में लिखा था कि इस दस्ते की योजना गुजरात के सोमनाथ व अक्षरधाम मंदिर
व महाराष्ट्र के सिद्धि विनायक मंदिर पर हमला करने की थी।
9) शुरू में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने गुजरात पुलिस द्वारा मुठभेड़
के बाद पेश किए गए साक्ष्यों को सही ठहराते हुए हाईकोर्ट में एक हलफनामा दिया था,
जिसमें स्पष्ट तौर पर इशरत जहां को लश्कर का आतंकी बताया गया था। बाद में
राजनीति करते हुए केंद्र सरकार पलट गई और इसे दूसरा ही रूप दे दिया।
10) आज आईबी यानी खुफिया विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक
राजेंद्र कुमार को सीबीआई गिरफ्तार करने में जुटी है। सीबीआई का तर्क है कि
राजेंद्र कुमार ने गलत सूचना देकर इशरत को मरवाया। यह भी आरोप है कि वह गुजरात
पुलिस की कस्टडी में मौजूद इशरत को देखने भी गए थे और मुठभेड़ की सारी साजिश को
अंजाम दिया था।
जबकि सच यह है कि आईबी केवल सूचनाओं को मॉनिटरिंग करने और उन्हें संबद्ध
पक्ष को देने वाली एजेंसी है न कि कार्रवाई करने वाली एजेंसी। इसलिए आईबी के
अधिकारी द्वारा किसी को मारने का आदेश देने की बात ही गलत है। लेकिन कुछ भी कर
सकने में सक्षम कांग्रेस पार्टी व उसकी सरकार इशरत जहां के मुठभेड़ को गलत साबित
करने के लिए आईबी के विरुद्ध सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है जबकि दोनों ही केंद्रीय
एजेंसियां हैं।
11) लोगों को शायद पता नहीं है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ झंडा
बुलंद करने वाली कांग्रेस व अरब फंडेड एनजीओ जमात के कहने पर इशरत की मां शमीमा
कौसर ने केंद्र सरकार से यह मांग की थी कि इस मामले की जांच सीबीआई के अधिकारी
सतीश वर्मा को दिया जाए। लश्कर के एक आत्मघाती महिला की मां के कहने पर किसी
अधिकारी को पूरे मामले का जांच अधिकारी बनाया जाना ही केंद्र सरकार के प्रति संदेह
पैदा करता है।
12) आईबी ने सीबीआई निदेशक को कहा है कि सीबीआई अधिकारी सतीश वर्मा
व आईबी के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेंद्र कुमार के बीच पुराने समय में बेहद
कटु संबंध थे।
इसकी सूचना केंद्र सरकार को भी थी, लेकिन सरकार ने एक आरोपी आतंकी
की मां की मांग पर अपनी के दो एजेंसियों की साख पर बट्टा लगा दिया।
13) हर तरफ फजीहत होता देख और आईबी के विरोध के बाद केंद्र सरकार
ने उस जांच अधिकारी सतीश वर्मा को इस मामले की जांच से हटा दिया है, लेकिन तब तक
आईबी व सीबीआई की फजीहत हो चुकी थी।
14) जिस आईबी के निदेशक का नाम इससे पहले कोई नहीं जानता था, आज
एकमुश्त मुसलमान वोट के लिए यूपीए को दोबारा सत्ता में लाने की कांग्रेसी महत्वाकांक्षा
में उनकी तस्वीर भी जनता के समक्ष आ चुकी है। इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री सुशील
कुमार शिंदे ने 'सोनिया जी के कारण ही एक मुसलमान को आईबी का निदेशक बनाया गया
है'- जैसा घोर सांप्रदायिक बयान देकर आईबी निदेशक की पहचान पहले ही उजागर कर चुके
हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर इस देश के राजनीतिज्ञ कब तक मुसलमानों को
इंसान से अधिक एक वोट बैंक मानकर चलते रहेंगे? कब तक चरमपंथी मुसलमान राष्ट्र
राज्य से अधिक इस्लामी राज्य की स्थापना के लिए निर्दोष लोगों को आतंक का
शिकार बनाते रहेंगे? इस्लामी चरमपंथियों को 'संत' साबित करने की कोशिश आखिर कब तक
चलती रहेगी? कब तक मानवाधिकार के नाम पर मीडिया-एनजीओ-बुद्धिजीवियों की जमात
आतंकियों के पक्ष में और पुलिस-सेना के विरोध में खड़ी होती रहेगी? और कब तक इस
देश के नागरिक इशरत जहां जैसों की पृष्ठभूमि को जानकर भी उसके नाम पर चलने वाली
राजनीति को खामोश रहकर बर्दाश्त करते रहेंगे?....आखिर कब तक ये सब चलता
रहेगा?....कब तक....?
-- Sandeep Dev
http://www.aadhiabadi.com/positive-interference/vichar-vimarsh/741-who-was-ishrat-jahan