Sunday, October 13, 2013

राम प्रसाद बिस्मिल और जवाहर लाल नेहरू: काकोरी लूट का मुकदमा


काकोरी कांड : ९ अगस्त १९२५ को काकोरी के पास महान क्रन्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में कुछ क्रांतिकारियों ने ८ डाउन सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर रोककर सरकारी खजाना लूट लिया।

 

२६ सितम्बर १९२५ तक ब्रिटिश पुलिस ने समूचे देश में ४० लोग गिरफ्तार किये, उन पर मुकदमा चलाया गया और पूरे डेढ़ साल तक लखनऊ हजरतगंज चौराहे पर बड़े डाकघर के पास स्थित रिकथियेटर नाम के सिनेमाघर को अदालत बनाकर उसमें काकोरी कांड के मुक़दमे का तांडव खेला गया।

इसमें रामप्रसाद बिस्मिल समेत चार लोगों, ठाकुर रोशन सिंह, अश्फाक उल्ला खां व राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी तथा अन्य १६ को आजीवन कारावास से लेकर कम से कम ५ बर्ष की सजाओं का आदेश दिया गया।

 

ये तो थी कहानी, अब कुछ तथ्य और --

 

अंग्रेज सरकार की ओर से १० लाख रुपये पानी की तरह बहाए गए और सरकारी वकील की हैसियत से पंडित जगत नारायण मुल्ला को ५०० रुपये रोज के मेहनताने पर रखा गया (याद रहे मुकदमा डेढ़ साल चला), और ये वही व्यक्ति था जो मैनपुरी षड्यंत्र में भी सरकारी वकील रह चुका था और पंडित जवाहरलाल नेहरु का साला था।

 

बिस्मिल ने ३० बर्ष और ६ महीने की आयु पायी। कैसी विडम्बना है कि चीन में रामप्रसाद बिस्मिल को लोग ज्यादा जानते हैं। लन्दन के ब्रिटिश म्यूजियम में उनका चित्र मिलेगा पर हिन्दुस्तान में शायद नहीं।

 

अब तो जागो अब काले अंग्रेजों से मुक्त भारत बनाओ, अब तो गद्दारों को हटाओं, कब तक इन्हें अपना खून पिलाकर पालोगे।

 

बिस्मिल ने एक शेर अपने बारे में कहा था --
 

खुश्बू-ए-वतन, जब भी इधर घूम के निकले,

कहिएगा मेरे नक्शेकदम चूम के निकले,

बिस्मिल का नहीं, हिंद पाक़ीज जमीं के,

आशिक का जनाजा है, जरा धूम से निकले।

पत्रिका संस्कारम से, अंक मार्च २०१३
 

Wednesday, August 28, 2013

कहाँ गया आपातकाल में खोदा गया जयपुर के राजघराने का खजाना?



अक्सर सुनने को मिलता है कि आपातकाल में भारत सरकार ने जयपुर के पूर्व राजघराने पर छापे मारकर उनका खजाना जब्त किया था, राजस्थान में यह खबर आम है कि - चूँकि जयपुर की महारानी गायत्री देवी कांग्रेस व इंदिरा गांधी की विरोधी थी अत: आपातकाल में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयपुर राजपरिवार के सभी परिसरों पर छापे की कार्यवाही करवाई, जिनमें जयगढ़ का किला प्रमुख था, कहते कि राजा मानसिंह की अकबर के साथ संधि थी कि राजा मानसिंह अकबर के सेनापति के रूप में जहाँ कहीं आक्रमण कर जीत हासिल करेंगे उस राज्य पर राज अकबर होगा और उस राज्य के खजाने में मिला धन राजा मानसिंह का होगा| इसी कहानी के अनुसार राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान सहित कई राज्यों पर जीत हासिल कर वहां से ढेर सारा धन प्राप्त किया और उसे लाकर जयगढ़ के किले में रखा, कालांतर में इस अकूत खजाने को किले में गाड़ दिया गया जिसे इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में सेना की मदद लेकर खुदाई कर गड़ा खजाना निकलवा लिया|

यही आज से कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी पर एक टेलीफिल्म देखी थी उसमें में गायत्री देवी द्वारा इस सरकारी छापेमारी का जिक्र था साथ ही फिल्म में तत्कालीन जयगढ़ किले के किलेदार को भी फिल्म में उस छापेमारी की चर्चा करते हुए दिखाया गया| जिससे यह तो साफ़ है कि जयगढ़ के किले के साथ राजपरिवार के आवासीय परिसरों पर छापेमारी की गयी थी|

जश्रुतियों के अनुसार उस वक्त जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सील कर सेना के ट्रकों में भरकर खजाने से निकाला धन दिल्ली ले जाया गया, लेकिन अधिकारिक तौर पर किसी को नहीं पता कि इस कार्यवाही में सरकार के कौन कौन से विभाग शामिल थे और किले से खुदाई कर जब्त किया गया धन कहाँ ले जाया गया|

चूँकि राजा मानसिंह के इन सैनिक अभियानों व इस धन को संग्रह करने में हमारे भी कई पूर्वजों का खून बहा था, साथ ही तत्कालीन राज्य की आम जनता का भी खून पसीना बहा था| इस धन को भारत सरकार ने जब्त कर राजपरिवार से छीन लिया इसका हमें कोई दुःख नहीं, कोई दर्द नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यह जनता के खून पसीने का धन था जो सरकारी खजाने में चला गया और आगे देश की जनता के विकास में काम आयेगा| पर चूँकि अधिकारिक तौर पर यह किसी को पता नहीं कि यह धन कितना था और अब कहाँ है ?

इसी जिज्ञासा को दूर करने व जनहित में आम जनता को इस धन के बारे जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पिछले माह मैंने एक RTI के माध्यम से गृह मंत्रालय से उपरोक्त खजाने से संबंधित निम्न सवाल पूछ सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जबाब मांगे -

1- क्या आपातकाल के दौरान केन्द्रीय सरकार द्वारा जयपुर रियासत के किलों, महलों पर छापामार कर सेना द्वारा खुदाई कर रियासत कालीन खजाना निकाला गया था ? यही हाँ तो यह खजाना इस समय कहाँ पर रखा गया है ?

2- क्या उपरोक्त जब्त किये गए खजाने का कोई हिसाब भी रखा गया है ? और क्या इसका मूल्यांकन किया गया था ? यदि मूल्यांकन किया गया था तो उपरोक्त खजाने में कितना क्या क्या था और है ?

3- उपरोक्त जब्त खजाने की जब्त सम्पत्ति की यह जानकारी सरकार के किस किस विभाग को है?

4- इस समय उस खजाने से जब्त की गयी सम्पत्ति पर किस संवैधानिक संस्था का या सरकारी विभाग का अधिकार है?

5- वर्तमान में जब्त की गयी उपरोक्त संपत्ति को संभालकर रखने की जिम्मेदारी किस संवैधानिक संस्था के पास है?

6- उस संवैधानिक संस्था या विभाग का का शीर्ष अधिकारी कौन है?

7- खजाने की खुदाई कर इसे इकठ्ठा करने के लिए किन किन संवैधानिक संस्थाओ को शामिल किया गया और ये सब कार्य किसके आदेश पर हुआ ?

8- इस संबंध में भारत सरकार के किन किन जिम्मेदार तत्कालीन जन सेवकों से राय ली गयी थी?

मेरे उपरोक्त प्रश्नों की RTI गृह मंत्रालय ने सूचना उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार, जन पथ, नई दिल्ली के निदेशक को भेजी, जहाँ से मुझे जबाब आया कि –आप द्वारा मांगी गयी सूचना राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध नहीं है| साथ इस विभाग ने कार्मिक प्रशिक्षण विभाग द्वारा दिए गये दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए लिखा कि प्राधिकरण में उपलब्ध सामग्री ही उपलब्ध कराई जा सकती है किसी आवेदक को कोई सूचना देने के लिए अनुसंधान कार्य नहीं किया जा सकता|

जबकि मैंने अपने प्रश्नों में ऐसी कोई जानकारी नहीं मांगी जिसमें किसी अनुसंधान की जरुरत हो, लेकिन जिस तरह सरकार द्वारा सूचना मुहैया कराने के मामले में हाथ खड़े किये गये है उससे यह शक गहरा गया कि उस वक्त जयपुर राजघराने से जब्त खजाना देश के खजाने में जमा ही नहीं हुआ, यदि थोड़ा बहुत भी जमा होता तो कहीं तो कोई प्रविष्ठी मिलती या इस कार्यवाही का कोई रिकोर्ड होता| पर किसी तरह का कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड नहीं होना दर्शाता है कि आपातकाल में उपरोक्त खजाना तत्कालीन शासकों के निजी खजानों में गया है| और सीधा शक जाहिर कर रहा कि उपरोक्त खोदा गया अकूत खजाना आपातकाल की आड़ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने खुर्द बुर्द कर स्विस बैंकों में भेज दिया जिसे सीधे सीधे जनता के धन पर डाका है|

साथ ही यह प्रश्न भी समझ से परे है कि इस संबंध में क्या जानकारी सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार में ही हो सकती है ? किसी अन्य विभागों यथा आयकर आदि के पास नहीं हो सकती ? जबकि गृह मंत्रालय ने मेरी RTI का जबाब देने को सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार को ही लिखा|

आप के पास इस संबंध में कोई जानकारी हो, किसी अख़बार की उस वक्त छपी न्यूज की प्रति हो कृपया मेरे साथ साँझा करें | साथ ही आरटीआई कार्यकर्त्ता इस संबंध में मार्गदर्शन करें कि यह जानकारी प्राप्त करने के लिए किन किन विभागों में आरटीआई लगायी जाय तथा पहले लगायी आरटीआई की अपील कैसे व कहाँ की जाय, आपकी सुविधा के लिए आरटीआई व उसके जबाब की प्रतियाँ निम्न लिंक पर उपलब्ध है|

RTI Copy :--

RTI Reply :--
 

Sunday, June 30, 2013

क्‍या आप इशरत जहां व उसके साथियों की सच्‍चाई जानते हैं? Who is Ishrat Jahan

मुसलमान वोट पाने और अपने घोर विरोधी व गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए केंद्र सरकार जिस तरह से मजहबी आतंकवादियों की पैरोकार बनी हुई है, वह इस देश के लिए बेहद घातक है। केंद्र सरकार की संचालक कांग्रेस ने अपने पिट्ठू मीडिया हाउसों व बुद्धिजीवियों को भी इसका ठेका दे दिया है कि वह लगातार झूठ बोल-बोल कर इशरत जहां को 'संत इशरत' और इंटेलिजेंस ब्‍यूरो(IB) व गुजरात पुलिस को हैवान साबित करे, भले ही इससे देश की सुरक्षा दांव पर लगती हो! कट्टरपंथी मुसलमानों को भी यह रास आ रहा है....आखिर यह इस्‍लामी आतंकवाद को सरकारी स्‍वीकार्यता जो प्रदान करता है! 

 
 
चलिए छोडि़ए, जरा उस इशरत जहां की पृष्‍ठभूमि पर गौर फरमा लें, जिसकी जिंदगी यूपीए सरकार, कांग्रेस पार्टी, तहलका व एनडीटीवी जैसे मीडिया हाउसों, सरकारी व अरब के फंड पर पलने वाले पालतू एनजीओ और अपने दिमाग को बेचकर पैसा कमाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों लिए 'अनमोल' बन चुकी है! 
1) गुजरात पुलिस के क्राइम ब्रांच ने 15 जून 2004 को एक मुठभेड़ में चार लोगों को मार गिराया था, जिनके नाम हैं- जीशन जौहर उर्फ अब्‍दुल गनी, अहमद अली उर्फ सलीम, जावेद गुलाम शेख उर्फ प्रनेश कुमार पिल्‍लई और इशरत जहां। आरोप है कि गुजरात पुलिस ने इन चारों को फर्जी मुठभेड़ में मारा था। वहीं गुजरात पुलिस का पक्ष था कि उन्‍हें आईबी से यह सूचना मिली थी कि ये चारों लश्‍कर-ए-तैयबा के आतंकी हैं और गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इसके अलावा ये लोग गुजरात में जगह-जगह आतंकी हमले को अंजाम देना चाहते थे।
2) बाद में मारे गए व्‍यक्तियों में दो- जीशन जौहर व अहमद अली की पहचान पाकिस्‍तानी नागरिक के रूप में हुई।
3) जीशन जौहर पाक अधिकृत कश्‍मीर से जम्‍मू-कश्‍मीर में घुसा था। वहीं, अमजद अली को लश्‍कर-ए-तैयबा ने गुजरात व महाराष्‍ट्र में आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए सीधे पाकिस्‍तान से भारत के बॉर्डर में भेजा था।
4) तीसरा व्‍यक्ति जावेद उर्फ पिल्‍लई दुबई गया था, जहां लश्‍कर के प्रभाव में आकर उसने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था और वह मुसलमान बन गया था।
5) लश्‍कर के इशारे पर जावेद व इशरत पति-पत्‍नी बनकर इत्र कारोबारी के रूप में भारत के अंदर भ्रमण करते थे ताकि किसी को उन पर शक न हो। दोनों ने साथ-साथ अहमदाबाद, लखनऊ व फैजाबाद जा कर महत्‍वपूर्ण स्‍थलों की रेकी की थी।
6) जो कांग्रेस संचालित यूपीए सरकार इशरत जहां को 'संत इशरत' साबित करने के लिए उसके फर्जी मुठभेड़ की थ्‍योरी गढ़ रही है, उसी केंद्र सरकार ने गुजरात हाईकोर्ट में यह हलफनामा दाखिल कर कहा था कि जावेद व इशरत आतंकवादी संगठन लश्‍कर-ए-तैयबा के सदस्‍य हैं।
7) 15 जून 2004 को इशरत सहित मुठभेड़ में चारों आतंकी मारे गए थे। उसके अगले ही दिन पाकिस्‍तान के लाहौर से प्रकाशित लश्‍कर-ए-तैयबा के मुख पत्र ' गजवा टाइम्‍स' ने मारे गए आतंकियों को शहीद करार देते हुए लिखा था कि भारतीय पुलिस ने लश्‍कर के चार सदस्‍यों को मार दिया। इसमें इशरत जहां का नाम भी शामिल था।
8) 24/11 को मुंबई हमले के मास्‍टर माइंड हेविड हेडली से पूछताछ के दौरान अमेरिका के एफबीआई को जो सूचना मिली थी, उसने उसे भारत सरकार से साझा किया था। अमेरिका द्वारा भारत सरकार को भेजे गए औपचारिक पत्र में लिखा था कि ' इशरत जहां आत्‍मघाती दस्‍ते की महिला सदस्‍य थी, जिसे लश्‍कर ने भर्ती किया था।' एफबीआई ने उस पत्र में लिखा था कि इस दस्‍ते की योजना गुजरात के सोमनाथ व अक्षरधाम मंदिर व महाराष्‍ट्र के सिद्धि विनायक मंदिर पर हमला करने की थी।
9) शुरू में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने गुजरात पुलिस द्वारा मुठभेड़ के बाद पेश किए गए साक्ष्‍यों को सही ठहराते हुए हाईकोर्ट में एक हलफनामा दिया था, जिसमें स्‍पष्‍ट तौर पर इशरत जहां को लश्‍कर का आतंकी बताया गया था। बाद में राजनीति करते हुए केंद्र सरकार पलट गई और इसे दूसरा ही रूप दे दिया।
10) आज आईबी यानी खुफिया विभाग के तत्‍कालीन संयुक्‍त निदेशक राजेंद्र कुमार को सीबीआई गिरफ्तार करने में जुटी है। सीबीआई का तर्क है कि राजेंद्र कुमार ने गलत सूचना देकर इशरत को मरवाया। यह भी आरोप है कि वह गुजरात पुलिस की कस्‍टडी में मौजूद इशरत को देखने भी गए थे और मुठभेड़ की सारी साजिश को अंजाम दिया था।
जबकि सच यह है कि आईबी केवल सूचनाओं को मॉनिटरिंग करने और उन्‍हें संबद्ध पक्ष को देने वाली एजेंसी है न कि कार्रवाई करने वाली एजेंसी। इसलिए आईबी के अधिकारी द्वारा किसी को मारने का आदेश देने की बात ही गलत है। लेकिन कुछ भी कर सकने में सक्षम कांग्रेस पार्टी व उसकी सरकार इशरत जहां के मुठभेड़ को गलत साबित करने के लिए आईबी के विरुद्ध सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है जबकि दोनों ही केंद्रीय एजेंसियां हैं।
11) लोगों को शायद पता नहीं है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाली कांग्रेस व अरब फंडेड एनजीओ जमात के कहने पर इशरत की मां शमीमा कौसर ने केंद्र सरकार से यह मांग की थी कि इस मामले की जांच सीबीआई के अधिकारी सतीश वर्मा को दिया जाए। लश्‍कर के एक आत्‍मघाती महिला की मां के कहने पर किसी अधिकारी को पूरे मामले का जांच अधिकारी बनाया जाना ही केंद्र सरकार के प्रति संदेह पैदा करता है।
12) आईबी ने सीबीआई निदेशक को कहा है कि सीबीआई अधिकारी सतीश वर्मा व आईबी के तत्‍कालीन संयुक्‍त निदेशक राजेंद्र कुमार के बीच पुराने समय में बेहद कटु संबंध थे।
इसकी सूचना केंद्र सरकार को भी थी, लेकिन सरकार ने एक आरोपी आतंकी की मां की मांग पर अपनी के दो एजेंसियों की साख पर बट्टा लगा दिया।
13) हर तरफ फजीहत होता देख और आईबी के विरोध के बाद केंद्र सरकार ने उस जांच अधिकारी सतीश वर्मा को इस मामले की जांच से हटा दिया है, लेकिन तब तक आईबी व सीबीआई की फजीहत हो चुकी थी।
14) जिस आईबी के निदेशक का नाम इससे पहले कोई नहीं जानता था, आज एकमुश्‍त मुसलमान वोट के लिए यूपीए को दोबारा सत्‍ता में लाने की कांग्रेसी महत्‍वाकांक्षा में उनकी तस्‍वीर भी जनता के समक्ष आ चुकी है। इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने 'सोनिया जी के कारण ही एक मुसलमान को आईबी का निदेशक बनाया गया है'- जैसा घोर सांप्रदायिक बयान देकर आईबी निदेशक की पहचान पहले ही उजागर कर चुके हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर इस देश के राजनीतिज्ञ कब तक मुसलमानों को इंसान से अधिक एक वोट बैंक मानकर चलते रहेंगे? कब तक चरमपंथी मुसलमान राष्‍ट्र राज्‍य से अधिक इस्‍लामी राज्‍य की स्‍थापना के लिए निर्दोष लोगों को आतंक का शिकार बनाते रहेंगे? इस्‍लामी चरमपंथियों को 'संत' साबित करने की कोशिश आखिर कब तक चलती रहेगी? कब तक मानवाधिकार के नाम पर मीडिया-एनजीओ-बुद्धिजीवियों की जमात आतंकियों के पक्ष में और पुलिस-सेना के विरोध में खड़ी होती रहेगी? और कब तक इस देश के नागरिक इशरत जहां जैसों की पृष्‍ठभूमि को जानकर भी उसके नाम पर चलने वाली राजनीति को खामोश रहकर बर्दाश्‍त करते रहेंगे?....आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा?....कब तक....?

-- Sandeep Dev
http://www.aadhiabadi.com/positive-interference/vichar-vimarsh/741-who-was-ishrat-jahan


Wednesday, March 13, 2013

जिम्मेदार कौन ?


इन सब के लिए कौन जिम्मेदार है..?

(1) राउरकेला और जमशेदपुर में 1964 के सांप्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 2000 हिंदुओ को मार डाला. सत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस

(2) बंगाल 1947 में सांप्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 5000 हिंदुओ मार डाला सत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस

(3) 1967 अगस्त रांची में सांप्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 200 हिंदुओ फिर मारा गया सत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस-कांग् -रेस

(4) 1969 अहमदाबाद में सांप्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 512 से अधिक हिंदुओ को मार डाला सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस

(5) 1970 महाराष्ट्र में भिवंडी सांप्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने लगभग 80 हिंदु मारे गए सत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस

(6) अप्रैल 1979 में मुसलमानों ने जमशेदपुर में साम्प्रदायिक दंगों,में 126 हिंदुओ मार डाला, पश्चिम बंगाल 125 से अधिक हिंदु मारे गए सत्तारूढ़ पार्टी -CPIM

(7) अगस्त १९८० मुरादाबाद साम्प्रदायिक दंगों में लगभग मुसलमानों ने 2000 हिंदुओ को मार डाला सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस

(8) मई 1984 भिवंडी में साम्प्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 146 हिंदुओ को मार डाला, – सत्तारूढ़ पार्टी – कांग्रेस


(9) अक्टूबर 1984 दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 2733हिंदुओ को मार डाला सत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस

(10) अप्रैल 1985 में मुसलमानों ने अहमदाबाद में सांप्रदायिक दंगों में 3000 हिंदुओ को मारा गयासत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस

(11) जुलाई 1986 में मुसलमानों ने अहमदाबाद में सांप्रदायिक हिंसा 59 हिंदुओको मार डालासत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस

(12) अप्रैल मई 1987- 81 हिंदु मारे गए मेरठ, उत्तर प्रदेश में - सत्तारूढ़ पार्टी - कांग्रेस

(13) 1983 फ़रवरी असम में सांप्रदायिक हिंसा 2000 हिंदु को मार डाला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी.

(14) कश्मीर हिन्दुओ से खाली हो गया उस का जिम्मेदार कौन है, कांग्रेस सत्ता में और इस का अलावा बहुत कांड है जो कांग्रेस ने किये है, इन को मीडिया क्यों नहीं रोता क्यों सिर्फ गुजरात दीखता है.

Friday, February 1, 2013

समझौता एक्सप्रेस बम धमाके का सच

अभी कुछ ही दिन पहले यहाँ साध्वी प्रज्ञा सिंह जी की एक चिट्ठी आप लोगो को दिखाई थी, ये बताने के लिए की उन्हें किस तरह समझौता एक्सप्रेस बम धमाके में फसाया गया। ये कुछ तथ्य और हाथ लगें हैं प्रस्तुत हैं –

United Nations Security Council says LeT and other islamic organizations were involved in Samjhaouta express bomb blast, then why Indian home minister saying its RSS and BJP or Hindu Terror links ??
Please see yourself and think over the dangerous design of Congress to destroy India from within.
Truth of Samjhauta Express Bomb Blast

अगर साध्वी प्रज्ञा अपराधी हैं तो उनके अपराध को सबके सम्मुख क्यों नहीं रखा जाता ? उन्हें इसकी सजा क्यों नहीं दी जाती ? उन पर केवल अत्याचार ही क्यों हो रहा है ?

Truth of Samjhauta Express Bomb Blast

उन्हें प्रताणित किया जा रहा है क्योंकि कांग्रेस की नपुंसक सरकार अपने तथाकथित सेक्युलर राजनीती और मत्रियों के बेसिरपैर के "भगवा आतंकवाद" सम्बन्धी बयानों को पुष्ट कर, भारत को तोड़ने की साजिश में लगी हुयी है। उन्हें भगवा वस्त्र पहनने का दंड मिल रहा है, एक हिन्दू होने का दंड मिल रहा है।

जागो भारत जागो, और जागने के लिए सच जानना बहुत जरुरी है। ये उसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उठाया गया कदम है। जय हिन्द।

Saturday, January 12, 2013

साध्वी प्रज्ञा जी की चिठ्ठी - मुर्दों के नाम

मैं साध्वी प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर,
उम्र-38 साल, पेशा-कुछ नहीं,

7 गंगा सागर अपार्टमेन्ट, कटोदरा, सूरत, गुजरात राज्य की निवासी हूं जबकि मैं मूलतः मध्य प्रदेश की निवासिनी हूं. कुछ साल पहले हमारे अभिभावक सूरत आकर बस गये. पिछले कुछ सालों से मैं अनुभव कर रही हूं कि भौतिक जगत से मेरा कटाव होता जा रहा है. आध्यात्मिक जगत लगातार मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. इसके कारण मैंने भौतिक जगत को अलविदा करने का निश्चय कर लिया और 30-01-2007 को संन्यासिन हो गयी. 7-10-2008 को जब मैं अपने जबलपुर के आश्रम में थी तो शाम को महाराष्ट्र से एटीएस के एक पुलिस अधिकारी का फोन मेरे पास आया जिन्होंने अपना नाम सावंत बताया. वे मेरी एलएमएल फ्रीडम बाईक के बारे में जानना चाहते थे. मैंने उनसे कहा कि वह बाईक तो मैंने बहुत पहले बेच दी है. अब मेरा उस बाईक से कोई नाता नहीं है. फिर भी उन्होंने मुझे कहा कि अगर मैं सूरत आ जाऊं तो वे मुझसे कुछ पूछताछ करना चाहते हैं. मेरे लिए तुरंत आश्रम छोड़कर सूरत जाना  संभव नहीं था इसलिए मैंने उन्हें कहा कि हो सके तो आप ही जबलपुर आश्रम आ जाईये, आपको जो कुछ पूछताछ करनी है कर लीजिए. लेकिन उन्होंने जबलपुर आने से मना कर दिया और कहा कि जितनी जल्दी हो आप सूरत आ  जाईये.

 

फिर मैंने ही सूरत जाने का निश्चय किया और ट्रेन से उज्जैन के रास्ते 10-10-2008 को सुबह सूरत पहुंच गयी. रेलवे स्टेशन पर भीमाभाई पसरीचा मुझे लेने आये थे. उनके साथ मैं उनके निवासस्थान एटाप नगर चली गयी. यहीं पर सुबह के कोई 10 बजे मेरी सावंत से मुलाकात हुई जो एलएमएल बाईक की खोज करते हुए पहले से ही सूरत में थे. सावंत से मैंने पूछा कि मेरी बाईक के साथ क्या हुआ और उस बाईक के बारे में आप पडताल क्यों कर रहे हैं? श्रीमान सावंत ने मुझे बताया कि पिछले सप्ताह सितंबर में मालेगांव में जो विस्फोट हुआ है उसमें वही बाईक इस्तेमाल की गयी है. यह मेरे लिए भी बिल्कुल नयी जानकारी थी कि मेरी बाईक का इस्तेमाल मालेगांव धमाकों में किया गया है. यह सुनकर मैं सन्न रह गयी. मैंने सावंत को कहा कि आप जिस एलएमएल फ्रीडम बाईक की बात कर रहे हैं उसका रंग और नंबर वही है जिसे मैंने कुछ साल पहले बेच दिया था. सूरत में सावंत से बातचीत में ही मैंने उन्हें बता दिया था कि वह एलएमएल फ्रीडम बाईक मैंने अक्टूबर 2004 में ही मध्यप्रदेश के श्रीमान जोशी को 24 हजार में बेच दी थी. उसी महीने में मैंने आरटीओ के तहत जरूरी कागजात (टीटी फार्म) पर हस्ताक्षर करके बाईक की लेन-देन पूरी कर दी थी. मैंने साफ तौर पर सावंत को कह दिया था कि अक्टूबर 2004 के बाद से मेरा उस बाईक पर कोई अधिकार नहीं रह गया था. उसका कौन इस्तेमाल कर रहा है इससे भी मेरा कोई मतलब नहीं था. लेकिन सावंत ने कहा कि वे मेरी बात पर विश्वास नहीं कर सकते. इसलिए मुझे उनके साथ मुंबई जाना पड़ेगा ताकि वे और एटीएस के उनके अन्य साथी इस बारे में और पूछताछ कर सकें. पूछताछ के बाद मैं आश्रम आने के लिए आजाद हूं.

 

यहां यह ध्यान देने की बात है कि सीधे तौर पर मुझे 10-10-2008 को गिरफ्तार नहीं किया गया. मुंबई में पूछताछ के लिए ले जाने की बाबत मुझे कोई सम्मन भी नहीं दिया गया. जबकि मैं चाहती तो मैं सावंत को अपने आश्रम

ही आकर पूछताछ करने के लिए मजबूर कर सकती थी क्योंकि एक नागरिक के नाते यह मेरा अधिकार है. लेकिन मैंने सावंत पर विश्वास किया और उनके साथ बातचीत के दौरान मैंने कुछ नहीं छिपाया. मैं सावंत के साथ मुंबई जाने के लिए तैयार हो गयी. सावंत ने कहा कि मैं अपने पिता से भी कहूं कि वे मेरे साथ मुंबई चलें. मैंने सावंत से कहा कि उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए उनको साथ लेकर चलना ठीक नहीं होगा. इसकी बजाय मैंने भीमाभाई को साथ लेकर चलने के लिए कहा जिनके घर में एटीएस मुझसे पूछताछ कर रही थी. शाम को 5.15 मिनट पर मैं, सावंत और भीमाभाई सूरत से मुंबई के लिए चल पड़े. 10 अक्टूबर को ही देर रात हम लोग मुंबई पहुंच गये. मुझे सीधे कालाचौकी स्थित एटीएस के आफिस ले जाया गया था. इसके बाद अगले दो दिनों तक एटीएस की टीम मुझसे पूछताछ करती रही. उनके सारे सवाल 29-9-2008 को मालेगांव में हुए विस्फोट के इर्द-गिर्द ही घूम रहे थे. मैं उनके हर सवाल का सही और सीधा जवाब दे रही थी. अक्टूबर को एटीएस ने अपनी पूछताछ का रास्ता बदल दिया. अब उसने उग्र होकर पूछताछ करना शुरू किया. पहले उन्होंने मेरे शिष्य भीमाभाई पसरीचा (जिन्हें मैं सूरत से अपने साथ लाई थी) से कहा कि वह मुझे बेल्ट और डंडे से मेरी हथेलियों, माथे और तलुओं पर प्रहार करे. जब पसरीचा ने ऐसा करने से मना किया तो एटीएस ने पहले उसको मारा-पीटा. आखिरकार वह एटीएस के कहने पर मेरे ऊपर प्रहार करने लगा. कुछ भी हो, वह मेरा शिष्य है और कोई शिष्य अपने गुरू को चोट नहीं पहुंचा सकता. इसलिए प्रहार करते वक्त भी वह इस बात का ध्यान रख रहा था कि मुझे कोई चोट न लग जाए. इसके बाद खानविलकर ने उसको किनारे धकेल दिया और बेल्ट से खुद मेरे हाथों, हथेलियों, पैरों, तलुओं पर प्रहार करने लगा. मेरे शरीर के हिस्सों में अभी भी सूजन मौजूद है.

 

13 तारीख तक मेरे साथ सुबह, दोपहर और रात में भी मारपीट की गयी. दो बार ऐसा हुआ कि भोर में चार बजे मुझे जगाकर मालेगांव विस्फोट के बारे में मुझसे पूछताछ की गयी. भोर में पूछताछ के दौरान एक मूछवाले आदमी ने मेरे साथ मारपीट की जिसे मैं अभी भी पहचान सकती हूं. इस दौरान एटीएस के लोगों ने मेरे साथ बातचीत में बहुत भद्दी भाषा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. मेरे गुरू का अपमान किया गया और मेरी पवित्रता पर सवाल किये गये. मुझे इतना परेशान किया गया कि मुझे लगा कि मेरे सामने आत्महत्या करने के अलावा अब कोई रास्ता नहीं बचा है. 14 अक्टूबर को सुबह मुझे कुछ जांच के लिए एटीएस कार्यालय से काफी दूर ले जाया गया जहां से दोपहर में मेरी वापसी हुई. उस दिन मेरी पसरीचा से कोई मुलाकात नहीं हुई. मुझे यह भी पता नहीं था कि वे (पसरीचा) कहां है. 15 अक्टूबर को दोपहर बाद मुझे और पसरीचा को एटीएस के वाहनों में नागपाड़ा स्थित राजदूत होटल ले जाया गया जहां कमरा नंबर 315 और 314 में हमे क्रमशः बंद कर दिया गया. यहां होटल में हमने कोई पैसा जमा नहीं कराया और न ही यहां ठहरने के लिए कोई खानापूर्ति की. सारा काम एटीएस के लोगों ने ही किया. मुझे होटल में रखने के बाद एटीएस के लोगों ने मुझे एक मोबाईल फोन दिया. एटीएस ने मुझे इसी फोन से अपने कुछ रिश्तेदारों और शिष्यों (जिसमें मेरी एक महिला शिष्य भी शामिल थी) को फोन करने के लिए कहा और कहा कि मैं फोन करके लोगों को बताऊं कि मैं एक होटल में रूकी हूं और सकुशल हूं. मैंने उनसे पहली बार यह पूछा कि आप मुझसे यह सब क्यों कहलाना चाह रहे हैं. समय आनेपर मैं उस महिला शिष्य का नाम भी सार्वजनिक कर दूंगी. एटीएस की इस प्रताड़ना के बाद मेरे पेट और किडनी में दर्द शुरू हो गया. मुझे भूख लगनी बंद हो गयी. मेरी हालत बिगड़ रही थी. होटल राजदूत में लाने के कुछ ही घण्टे बाद मुझे एक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया जिसका नाम सुश्रुसा हास्पिटल था. मुझे आईसीयू में रखा गया. इसके आधे घण्टे के अंदर ही भीमाभाई पसरीचा भी अस्पताल में लाये गये और मेरे लिए जो कुछ जरूरी कागजी कार्यवाही थी वह एटीएस ने भीमाभाई से पूरी करवाई. जैसा कि भीमाभाई ने मुझे बताया कि श्रीमान खानविलकर ने हास्पिटल में पैसे जमा करवाये. इसके बाद पसरीचा को एटीएस वहां से लेकर चली गयी जिसके बाद से मेरा उनसे किसी प्रकार का कोई संपर्क नहीं हो पाया है. इस अस्पताल में कोई 3-4 दिन मेरा इलाज किया गया. यहां मेरी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था तो मुझे यहां से एक अन्य अस्पताल में ले जाया गया जिसका नाम मुझे याद नहीं है. यह एक ऊंची ईमारत वाला अस्पताल था जहां दो-तीन दिन मेरा ईलाज किया गया.

 

इस दौरान मेरे साथ कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं रखी गयी. न ही होटल राजदूत में और न ही इन दोनो अस्पतालों में. होटल राजदूत और दोनों अस्पताल में मुझे स्ट्रेचर पर लाया गया, इस दौरान मेरे चेहरे को एक काले कपड़े से ढंककर रखा गया. दूसरे अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मुझे फिर एटीएस के आफिस कालाचौकी लाया गया. इसके बाद 23-10-2008 को मुझे गिरफ्तार किया गया. गिरफ्तारी के अगले दिन 24-10-2008 को मुझे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, नासिक की कोर्ट में प्रस्तुत किया गया जहां मुझे 3-11-2008 तक पुलिस कस्टडी में रखने का आदेश हुआ. 24 तारीख तक मुझे वकील तो छोड़िये अपने परिवारवालों से भी मिलने की इजाजत नहीं दी गयी. मुझे बिना कानूनी रूप से गिरफ्तार किये ही 23-10-2008 के पहले ही पालीग्रैफिक टेस्ट किया गया. इसके बाद 1-11-2008 को दूसरा पालिग्राफिक टेस्ट किया गया. इसी के साथ मेरा नार्को टेस्ट भी किया गया. मैं कहना चाहती हूं कि मेरा लाई डिटेक्टर टेस्ट और नार्को एनेल्सिस टेस्ट बिना मेरी अनुमति के किये गये. सभी परीक्षणों के बाद भी मालेगांव विस्फोट में मेरे शामिल होने का कोई सबूत नहीं मिल रहा था. आखिरकार 2 नवंबर को मुझे मेरी बहन प्रतिभा भगवान झा से मिलने की इजाजत दी गयी. मेरी बहन अपने साथ वकालतनामा लेकर आयी थी जो उसने और उसके पति ने वकील गणेश सोवानी से तैयार करवाया था. हम लोग कोई निजी बातचीत नहीं कर पाये क्योंकि एटीएस को लोग मेरी बातचीत सुन रहे थे. आखिरकार 3 नवंबर को ही सम्माननीय अदालत के कोर्ट रूम में मैं चार-पांच मिनट के लिए अपने वकील गणेश सोवानी से मिल पायी. 10 अक्टूबर के बाद से लगातार मेरे साथ जो कुछ किया गया उसे अपने वकील को मैं चार- पांच मिनट में ही कैसे बता पाती? इसलिए हाथ से लिखकर माननीय अदालत को मेरा जो बयान दिया था उसमें विस्तार से पूरी बात नहीं आ सकी. इसके बाद 11 नवंबर को भायखला जेल में एक महिला कांस्टेबल की मौजूदगी में मुझे अपने वकील गणेश सोवानी से एक बार फिर 4-5 मिनट के लिए मिलने का मौका दिया गया. इसके अगले दिन 13 नवंबर को मुझे फिर से 8-10 मिनट के लिए वकील से मिलने की इजाजत दी गयी. इसके बाद शुक्रवार 14 नवंबर को शाम 4.30 मिनट पर मुझे मेरे वकील से बात करने के लिए 20 मिनट का वक्त दिया गया जिसमें मैंने अपने साथ हुई सारी घटनाएं सिलसिलेवार उन्हें बताई, जिसे यहां प्रस्तुत किया गया है.

लिखिए अपनी भाषा में