Wednesday, November 30, 2016

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (6): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (5)

देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख 

स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे

इंदिरा-मुजीब समझौते की स्थिति
ध्यान में रखने लायक एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सितम्बर, 2011 का यह समझौता 1974 के इंदिरा-मुजीब समझौते की अगली कड़ी के रूप में हुआ है। इंदिरा-मुजीब समझौता (1974) को उसी वर्ष दोनों देशों की संसद में पारित कराकर एक-दूसरे को देना था। समझौते की हस्ताक्षरित प्रतियां एक-दूसरे देश को सौंपने के दिन से ही वह समझौता प्रभावी माना जाने वाला था। बंगलादेश की संसद ने इस समझौते को 28 नवम्बर, 1974 को ही पारित कर दिया था। किंतु भारतीय जनमानस के दवाब के भय से भारत की कोई भी सरकार आज तक उस समझौते को संसद में चर्चा के लिए नहीं ला सकी। विगत 37 वर्षों में उस समझौते के विषय पर भारतीय संसद में कभी भी कोई चर्चा नहीं हुई है। 37 वर्षों तक प्रतीक्षा के बाद भी भारतीय संसद में पारित न होने वाले इस इंदिरा- मुजीब समझौते (1974) का भारत की जनता तथा भारतीय संसद के लिए क्या मूल्य हैसन् 1974 के जिस समझौते को भारतीय संसद ने पारित न किया होभारत के राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर न किये हों और न समझौते की अनुमोदित प्रतियां का अभी तक दोनों देशों के मध्य आदान-प्रदान ही हुआ होउसके ऊपर भारत सरकार इतना आगे बढ़कर अपनी 11 हजार एकड़ भूमि छोड़ने को क्यों तैयार हुई हैसरकार जानबूझकर इंदिरा-मुजीब समझौते को संसद में पारित कराने के लिए अभी तक नहीं लाई हैक्योंकि उसके अंदर अनेक समस्याओं के साथ साथ एक खतरनाक बात यह भी है कि, 'भारतीय एन्क्लेव्स की अदला-बदली के समय बंगलादेश को जाने वाली अपनी अधिक भूमि के बदले में भी भारत अतिरिक्त भूमि अथवा किसी प्रकार के हर्जाने की मांग नहीं करेगा।'
श्रीमती इंदिरा गांधी को भारतीय भूमि के साथ ऐसा समझौता करने का अधिकार किसने दे दिया थाक्या इंदिरा गांधी तथा उनके सहयोगी अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय (1960) के निर्देशों से अनभिज्ञ थेक्या इंदिरा गांधी यह नहीं जानती थीं कि बिना संविधान संशोधन के 'भारतीय एन्क्लेव्सकी हजारों एकड़ भूमि इस प्रकार किसी अन्य देश को नहीं दी जा सकतीइंदिरा गांधी ने वही गलती की जो 1958 में उनके पिता पं. जवाहरलाल जी ने की थी। यह समझौता न केवल असंवैधानिक था वरन् पूर्ण रूप से राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध भी था। भारत सरकार यह बात भली प्रकार जानती है कि इस प्रकार का समझौता जब भी संसद के पटल पर आएगा तब देशभर में इसके ऊपर चर्चा और बहस उग्र होती जाएगी। सरकार संसद की बहस से भयभीत है और किसी भी प्रकार से गोपनीय तरीके से समझौता करना चाहती है। 'भारतीय एन्क्लेव्सकी 10050 एकड़ अधिक जमीन बंगलादेश को जाएगी तो सरकार इसके पीछे क्या तर्क देगीयह सरकार की समझ में नहीं आ पा रहा है। सरकार यह ध्यान में रखे कि यदि देश की भूमि किसी दूसरे देश को जाएगी तो संविधान में संशोधन की प्रक्रिया अपनानी ही होगी।
इंदिरा-मुजीब समझौता (1974) अथवा मनमोहन-शेख हसीना समझौता (2011) के द्वारा भारत की भूमि किसी दूसरे देश को नहीं दी जा सकती। देश की सरकार और संसद के सदस्यों को देशहित में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करना चाहिए। महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल को भी इस भारत-बंगलादेश समझौते पर हस्ताक्षर करने से पूर्व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया का संज्ञान लेते हुए सरकार को निर्देशित करना चाहिए। यही देश के हित में होगा।


यदि देश का कोई भी हिस्सा किसी दूसरे देश को दिया जाएगा तो यह कार्य संविधान की धारा 368 के द्वारा संविधान में परिवर्तन करने के बाद ही संभव हो सकेगा। इंदिरा-मुजीब समझौता (1974) अथवा मनमोहन-शेख हसीना समझौता (2011) के द्वारा भारत की भूमि किसी दूसरे देश को नहीं दी जा सकती। सरकार संसद की बहस से भयभीत है और किसी भी प्रकार से गोपनीय तरीके से यह समझौता करना चाहती है।
जय हिन्द जय भारत

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