महान आर्यावर्त (भारत देश) का कोई सामान्य मनुष्य पिता भी हो सकता है? हम समझ नहीं सकते पर पढाया हमें यही गया था। कि कोई है जिसे हम राष्ट्रपिता कहते हैं जिसने स्वं ही अपने तथाकथित पुत्र के कई टुकड़े कर दिए तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का सहारा और मुस्लिम तुष्टीकरण की तलवार लेकर। लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जिस दिन इसी देश पर एक बालिका रानी लक्ष्मीबाई ने प्रश्नचिन्ह लगा दिया इस उपाधि पर ही।
एक छोटी बच्ची ने तीन मंत्रालयों को हिलाया --
- राष्ट्रपिता से संबंधित जो आदेश कभी पारित ही नहीं हुआ, उसे तलाशता रहा पीएमओ
- गृह मंत्रालय और केंद्रीय अभिलेखागार ने भी छानी खाक
लखनऊ, 3 अप्रैल (संवाद सूत्र) : जिज्ञासा उम्र की मोहताज नहीं होती। छोटी सी उम्र वाली ऐश्वर्या पराशर के मस्तिष्क में भी सवालों का ज्वार-भाटा जोर मारता रहता है। हद तो तब हो गई जब उसके सवालों का जवाब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), गृह मंत्रालय और केंद्रीय अभिलेखागार, तीनों नहीं दे सके। 'सूचना का अधिकार अधिनियम-2005' (आरटीआइ) के अंतर्गत उसने 'भारत सरकार के उस आदेश की छायाप्रति मांगी, जिसके अनुसार महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता घोषित किया गया हो'।
दरअसल बात यह है कि महात्मा गांधी किसी आदेश के तहत 'राष्ट्रपिता' घोषित नहीं हुए थे। पहली बार नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें रेडियो सिंगापुर पर छह जुलाई 1944 को दिए भाषण में राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। इसके बाद सरोजनी नायडू और पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी अपने संबोधनों में बापू को 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया। इन नेताओं द्वारा बापू को दी गई यह उपाधि जनसामान्य ने स्वीकार की। जब गांधी जी भारत सरकार के किसी आदेश द्वारा राष्ट्रपिता नहीं बने तो आदेश की छायाप्रति तो मिलनी ही नहीं थी और न ही मिली। सूचना से संबंधित जानकारी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय और केंद्रीय अभिलेखागार तीनों लगे रहे पर जिम्मेदारों को समझ में नहीं आया कि जवाब क्या दिया जाए। उन्होंने उत्तर दिया कि इस प्रकार के किसी कागज की छायाप्रति मौजूद नहीं है। वे यह नहीं कह सके कि इस प्रकार का आदेश कभी पारित ही नहीं हुआ। ऐसा कहते भी तब न, जबकि उन्हें खुद जानकारी होती। इस अंधी दौड़ में गृह मंत्रालय, पीएमओ और केंद्रीय अभिलेखागार की तो फजीहत हुई ही, साथ ही इस देश के इतिहास के विषय में उनकी जानकारी की भी पोल खुल गई। ऐसा तब है जब, गांधी नाम जपते हुए चलने वाली कांग्रेस की सरकार ही केंद्र में है।
ऐसा नहीं है कि ऐश्वर्या की आरटीआइ पर विभाग पहली बार बगले झांक रहा हो। इससे पहले भी 2009 में उसने आरटीआइ का प्रयोग किया था। उस समय उसने मुख्यमंत्री कार्यालय में आरटीआइ के माध्यम से पूछा था कि विद्यालय के आसपास जमा गंदगी से यदि कोई विद्यार्थी बीमार हो जाता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? इसका कोई जवाब नहीं मिला, हालांकि विद्यालय के आसपास की जमीन पर कूड़ा न डालने के निर्देश दिए गए और वह जमीन विद्यालय के सिपुर्द कर दी गई। अब उस जमीन पर विद्यालय द्वारा बनाया गया एक पुस्तकालय है।
किताब ने किया था प्रेरित: कक्षा छह की छात्रा ऐश्वर्या बताती हैं कि वह इतिहास की किताब में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का पाठ पढ़ रही थीं। उसमें महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया गया था। जिज्ञासा हुई कि कैसे वह राष्ट्रपिता बने? माता-पिता से पूछ गया तो उनके पास जवाब नहीं था। विद्यालय से भी उत्तर नहीं मिला। ऐसे में आरटीआइ डालने का सुझाव उनकी मां ने दिया, जो खुद आरटीआइ एक्टिविस्ट हैं।
पॉलीथिन मुक्त हो देश: दस वर्षीय ऐश्वर्या की तमन्ना है कि देश पॉलीथिन मुक्त हो। अभी वह अपनी परीक्षाओं में व्यस्त हैं। बाद में देशवासियों से पॉलीथिन प्रयोग न करने की अपील कर एक अभियान छेड़ने की तैयारी में हैं। ऐश्वर्या बताती हैं कि उनको गणित विषय सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। इसके अतिरिक्त खाली समय में वह अपने भाइयों राज (3) व यश (1) के साथ खेलती हैं। नाचना और गाना उनका शौक है। हालांकि वह कहीं भी इसकी विधिवत शिक्षा नहीं ले रही हैं।
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