All of us know that corrupt babus & politicians have penetrated the defense forces and we saw the result in Adarsh Scam and Sukna land Scam. In Any defense contract middlemen gets paid upto 15-20% of the deal, So with around $36 billion dollar defence budget arnd $5 billion dollar is grabbed by these middlemen. Who are the middlemen, mostty they are congressemen. Let us find out the reason for this kolaveri di ..?
1. General V.K singh was in charge of investigating the Land Scams and other corruption and he exposed the babu nexus in Army.
2. He started cleaning the army after becoming General and withheld lot of defense contracts marred in corruption giving sleepless nights to the ministry of defense.
3. He has even prepared a roadmap for future so that Defense forces can get the best deals without any corruption that ministry of defense hates.
4. He has also been offered a governors post by congress if he resigns. That he had already refused.
5. Last and the most important reason. He had sent a letter of support to Anna Hazare during his fast on 5th April.
And now congress wants to install a general who will be a puppet in the hands of congress just like our Mauni Baba. May be they are scared of General because he is a roadblock if the government wants to bring emergency in near future.
देश के सर्वोच्च न्यायालय में सेना और सरकार आमने-सामने हैं. आज़ादी के बाद भारतीय सेना की यह सबसे शर्मनाक परीक्षा है, जिसमें थल सेनाध्यक्ष की संस्था को सरकार दाग़दार कर रही है. पहली बार सेनाध्यक्ष और सरकार के बीच विवाद का फैसला अदालत में होगा. विवाद भी ऐसा, जिसे सुनकर दुनिया भर में भारत की हंसी उड़ रही है. यह मामला थल सेनाध्यक्ष जनरल विजय कुमार सिंह की जन्मतिथि का है. इस मामले में एक पीआईएल सुप्रीम कोर्ट के सामने है. वहां क्या होगा, यह पता नहीं, लेकिन इस विवाद को लेकर जो भ्रम फैलाया जा रहा है, उसे समझना ज़रूरी है. सारे तथ्य और सबूत इस बात को साबित करते हैं कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 है, लेकिन सरकार ने इस तथ्य को ठुकरा दिया और उनकी जन्मतिथि 10 मई, 1950 मान ली. सरकार की इस ज़िद का राज़ क्या है. सरकार क्यों देश के सर्वोच्च सेनाधिकारी को बेइज़्ज़त करने पर तुली है, जबकि यह बात दिन के उजाले की तरह सा़फ है कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 है. साक्ष्य इतने पक्के हैं कि सुप्रीम कोर्ट के तीन-तीन भूतपूर्व चीफ जस्टिस ने अपनी राय जनरल वी के सिंह के पक्ष में दी है. इसके बावजूद अगर विवाद जारी है तो इसका मतलब है कि दाल में कुछ काला है.
1. सरकार की नाराज़गी की कई वजहें हैं. भारतीय सेना एक ट्रक का इस्तेमाल करती है, जिसका नाम है टेट्रा ट्रक. भारतीय थलसेना टेट्रा ट्रक का इस्तेमाल मिसाइल लांचर की तैनाती और भारी-भरकम चीजों के ट्रांसपोर्टेशन में इस्तेमाल करती है. इन ट्रकों का पिछला ऑर्डर फरवरी, 2010 में दिया गया था, लेकिन ख़रीद में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायतें सामने आईं तो आर्मी चीफ वी के सिंह ने इस सौदे पर मुहर लगाने से इंकार कर दिया. भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड यानी बीईएमएल लिमिटेड को जिस व़क्त इन ट्रकों की आपूर्ति का ठेका मिला, तब भारतीय सेना की कमान जनरल दीपक कपूर के हाथ में थी.
2. दरअसल, बीईएमएल द्वारा टेट्रा ट्रकों की ख़रीद का पूरा मामला संदेह के घेरे में है. एक अंग्रेजी अख़बार डीएनए के मुताबिक़, रक्षा मंत्रालय की ओर से अभी तक दिए गए कुल ठेकों में भारी धनराशि बतौर रिश्वत दी गई है. डीएनए के मुताबिक़, यह पूरा रैकेट 1997 से चल रहा है. बीईएमएल में उच्च पद पर रह चुके एक पूर्व अधिकारी के हवाले से यह भी ख़बर आई कि अभी तक कंपनी टेट्रा ट्रकों की डील से जुड़ा कुल 5,000 करोड़ रुपये तक का कारोबार कर चुकी है. यह कारोबार टेट्रा सिपॉक्स (यूके) लिमिटेड के साथ किया गया है. इसे स्लोवाकिया की टेट्रा सिपॉक्स एएस की सब्सिडियरी बताया जाता रहा है. बीईएमएल के इस पूर्व अधिकारी के मुताबिक़, 5,000 करोड़ रुपये के इस कारोबार में 750 करोड़ रुपये बीईएमएल एवं रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को बतौर रिश्वत दिए गए.
3. बीईएमएल के एक शेयरधारक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता के एस पेरियास्वामी राष्ट्रपति के हस्तक्षेप और सीबीआई जांच की मांग कर चुके हैं. वह कहते हैं, ख़रीद के लिए जितनी रकम की मंजूरी दी जाती है, उसका कम से कम 15 फीसदी हिस्सा कमीशन में चला जाता है. ऊपर से नीचे तक सबको हिस्सा मिलता है. मैंने 2002 में कंपनी की एजीएम में यह मुद्दा उठाया था, लेकिन इस पर चर्चा नहीं की गई. एक प्रतिष्ठित बिजनेस अख़बार ने यहां तक लिखा कि बीईएमएल की टेट्रा ट्रकों की डील को कारगर बनाने में जुटी हथियार विक्रेताओं की लॉबी ने आर्मी चीफ को आठ करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश भी की थी, जिसे जनरल वी के सिंह ने ठुकरा दिया.
अब सवाल यह उठता है कि क्या आर्मी चीफ पर इसलिए पद छोड़ने का दबाव है, क्योंकि उन्होंने टेट्रा डील पर दस्तख़त नहीं किए थे? क्या बीईएमएल सेकेंड हैंड ट्रकों का आयात कर रही है और क्या स्लोवाकिया में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बंद हो गया है? क्या पुराने ट्रकों की मरम्मत को घरेलू उत्पादन के तौर पर दिखाया जा रहा है? रविंदर ऋषि कौन है, उसे इतने रक्षा सौदों का ठेका क्यों दिया जा रहा है? इस लॉबी के लिए सरकार में काम करने वाले लोग कौन हैं? अगर सरकार इन सवालों का जवाब नहीं देती है तो इसका मतलब यही है कि आर्मी चीफ को ठिकाने लगाने के लिए मा़िफया और अधिकारियों ने मिलजुल कर जन्मतिथि का बहाना बनाया है.
4. जनरल वी के सिंह ने सेना के आधुनिकीकरण के लिए एक प्लान तैयार किया, यह प्लान डिफेंस मिनिस्ट्री में लटका हुआ है. उन्होंने इस बीच कई ऐसे काम किए, जिनसे आर्म्स डीलरों और बिचौलियों की नींद उड़ गई. सिंगापुर टेक्नोलॉजी से एक डील हुई थी. इस कंपनी की राइफल को टेस्ट किया गया, उसके बाद जनरल वी के सिंह ने रिपोर्ट दी कि यह राइफल भारत के लिए उपयुुक्त नहीं है. भारतीय सेना को नए और आधुनिक हथियारों की ज़रूरत है. इस ज़रूरत को देखते हुए वह अगले एक-दो सालों में भारी मात्रा में सैन्य शस्त्र और नए उपकरण ख़रीदने वाली है. ख़ासकर, भारत इस साल भारी मात्रा में मॉडर्न असॉल्ट राइफलें ख़रीदने वाला है. भारत का सैन्य इतिहास यही बताता है कि आर्म्स डील के दौरान जमकर घूसखोरी और घपलेबाज़ी होती है. जनरल वी के सिंह सेना के अस्त्र-शस्त्रों की ख़रीददारी में पारदर्शिता लाना चाहते हैं. वह एक ऐसा सिस्टम बनाना चाहते हैं, जिसमें सैनिकों को दुनिया के सबसे आधुनिकतम हथियार मिलें, लेकिन कोई बिचौलिया न हो और न कहीं किसी को दलाली खाने का अवसर मिले
5. जबसे वह सेनाध्यक्ष बने हैं, तबसे भारतीय सेना पर कोई घोटाले या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा. भ्रष्टाचार के जो पुराने मामले थे, उन्हें न स़िर्फ निपटाया गया, बल्कि उन्होंने आदर्श जैसे घोटाले की जांच में एजेंसियों की मदद की. आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के ज़मीन घोटाले में जनरल वी के सिंह ने मुस्तैदी दिखाई. सेना की कोर्ट ऑफ इनक्वायरी का गठन किया, जिसमें दो पूर्व सेनाध्यक्षों-जनरल दीपक कपूर और जनरल एन सी विज सहित कई टॉप अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया. इन सबका नतीजा यह हुआ कि आर्म्स डीलरों की लॉबी, अधिकारी, ज़मीन मा़िफया और ऐसे कई सारे लोग जनरल वी के सिंह के ख़िला़फ लामबंद हो गए और उनकी जन्मतिथि के विवाद को हवा दी.
6. जबसे वह सेनाध्यक्ष बने हैं, तबसे भारतीय सेना पर कोई घोटाले या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा. भ्रष्टाचार के जो पुराने मामले थे, उन्हें न स़िर्फ निपटाया गया, बल्कि उन्होंने आदर्श जैसे घोटाले की जांच में एजेंसियों की मदद की. आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के ज़मीन घोटाले में जनरल वी के सिंह ने मुस्तैदी दिखाई. सेना की कोर्ट ऑफ इनक्वायरी का गठन किया, जिसमें दो पूर्व सेनाध्यक्षों-जनरल दीपक कपूर और जनरल एन सी विज सहित कई टॉप अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया. इन सबका नतीजा यह हुआ कि आर्म्स डीलरों की लॉबी, अधिकारी, ज़मीन मा़िफया और ऐसे कई सारे लोग जनरल वी के सिंह के ख़िला़फ लामबंद हो गए और उनकी जन्मतिथि के विवाद को हवा दी.
7. उन्होंने सेना में मीट की सप्लाई करने वाले मीट कारटेल का स़फाया कर दिया, वे लोग जो मीट सप्लाई करते थे, वह ठीक नहीं था. जनरल वी के सिंह ने इसके लिए ग्लोबल टेंडर की शुरुआत की, ताकि दुनिया का सबसे बेहतर मीट सेना के जवानों को मिले.
8. सेनाध्यक्ष बनते ही उन्होंने सेना में मौजूद भ्रष्टाचार और मा़िफया तंत्र को ख़त्म करना शुरू कर दिया. लगता है, यह बात नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक में बैठे अधिकारियों को ख़राब लगी. देश में सरकारी तंत्र कैसे चल रहा है, यह एक स्कूली बच्चे को भी पता है. लगता है, देश में जो ईमानदार और आदर्शवादी लोग हैं, उनके लिए सरकारी तंत्र में कोई जगह नहीं रह गई है. उन्हें ईनाम मिलने की जगह सज़ा दी जाती है और जलील किया जाता है.
क्या इस देश में अलग-अलग नागरिकों के लिए अलग-अलग क़ानून हैं या फिर यह मान लिया जाए कि इस देश को मा़िफया सरगना और सरकार में बैठे उनके दलाल चला रहे हैं. पूरे देश की जनता एक ऐसे घिनौने वाक्ये से रूबरू हो रही है, जिसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पिछले सात सालों में जिस तरह देश में संवैधानिक और राजनीतिक संस्थानों की बर्बादी हुई है, वैसी पहले कभी नहीं हुई. हैरानी की बात यह है कि सरकार एक तऱफ यह कह रही है कि थल सेनाध्यक्ष झूठ बोल रहे हैं और दूसरी तऱफ वह उनसे डील भी करती है कि उन्हें किसी देश का राजदूत या किसी राज्य का गवर्नर बना दिया जाएगा. यही नहीं, यह धमकी भी दी जा रही है कि अगर वह कोर्ट गए तो उन्हें सेनाध्यक्ष के पद से ब़र्खास्त कर दिया जाएगा.
इसलिए जनरल वी के सिंह को ख़ुद के लिए नहीं, बल्कि इस संस्था की गरिमा बचाने के लिए कोर्ट में जाना चाहिए. अगर वह नहीं गए तो इसका मतलब यही है कि देश के माफिया, अधिकारी और नेता जब चाहें, गिरोह बनाकर भविष्य के सेनाध्यक्षों को नीचा दिखा सकते हैं, उन्हें मनचाहा काम कराने के लिए मजबूर कर सकते हैं. जनरल वी के सिंह लड़ रहे हैं, यह अच्छी बात है. हो सकता है, भविष्य में किसी दूसरे ईमानदार सेनाध्यक्ष के साथ फिर ऐसा हो, लेकिन वह जनरल वी के सिंह की तरह लड़ भी न सके.