Wednesday, November 30, 2016

Lt. General Nathu Singh Rathore: A true leader


After getting freedom, a meeting was organized to select the first General of Indian Army. Jawahar Lal Nehru was heading that meeting. Leaders and Army officers were discussing to whom this responsibility should be given.

In between the discussion Nehru said, “I think we should appoint a British officer as a General of Indian Army as we don't have enough experience to lead the same.” Everybody supported Nehru because if the PM was suggesting something, how can they not agree?

But one of the army officers abruptly said, “I have a point, sir.”

Nehru said, “Yes, gentleman. You are free to speak.”

He said, “You see, sir, we don't have enough experience to lead a nation too, so shouldn't we appoint a British person as first PM of India?

The meeting hall suddenly went quiet.

Then, Nehru said, “Are you ready to be the first General of Indian Army? He got a golden chance to accept the offer but he refused the same and said, Sir, we have a very talented army officer, my senior, Lt Gen Cariappa, who is the most deserving among us.”

The army officer who raised his voice against the PM was Lt. General Nathu Singh Rathore, the first Lt General of the Indian Army.

If only a few hundred of Selfless leaders come forward, they can change the image of Armed Forces and the image of our country.
Jai Hind Jai Bharat.


--Source: Facebook

Why congress wants to remove General V.K Singh?


All of us know that corrupt babus & politicians have penetrated the defense forces and we saw the result in Adarsh Scam and Sukna land Scam. In Any defense contract middlemen gets paid upto 15-20% of the deal, So with around $36 billion dollar defence budget arnd $5 billion dollar is grabbed by these middlemen. Who are the middlemen, mostty they are congressemen. Let us find out the reason for this kolaveri di ..?

1. General V.K singh was in charge of investigating the Land Scams and other corruption and he exposed the babu nexus in Army.

2. He started cleaning the army after becoming General and withheld lot of defense contracts marred in corruption giving sleepless nights to the ministry of defense.

3. He has even prepared a roadmap for future so that Defense forces can get the best deals without any corruption that ministry of defense hates.

4. He has also been offered a governors post by congress if he resigns. That he had already refused.

5. Last and the most important reason. He had sent a letter of support to Anna Hazare during his fast on 5th April.

And now congress wants to install a general who will be a puppet in the hands of congress just like our Mauni Baba. May be they are scared of General because he is a roadblock if the government wants to bring emergency in near future.

If you want to read in detail go thru this link - चौथी दुनिया से एक और सच

देश के सर्वोच्च न्यायालय में सेना और सरकार आमने-सामने हैं. आज़ादी के बाद भारतीय सेना की यह सबसे शर्मनाक परीक्षा हैजिसमें थल सेनाध्यक्ष की संस्था को सरकार दाग़दार कर रही है. पहली बार सेनाध्यक्ष और सरकार के बीच विवाद का फैसला अदालत में होगा. विवाद भी ऐसाजिसे सुनकर दुनिया भर में भारत की हंसी उड़ रही है. यह मामला थल सेनाध्यक्ष जनरल विजय कुमार सिंह की जन्मतिथि का है. इस मामले में एक पीआईएल सुप्रीम कोर्ट के सामने है. वहां क्या होगायह पता नहींलेकिन इस विवाद को लेकर जो भ्रम फैलाया जा रहा हैउसे समझना ज़रूरी है. सारे तथ्य और सबूत इस बात को साबित करते हैं कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 हैलेकिन सरकार ने इस तथ्य को ठुकरा दिया और उनकी जन्मतिथि 10 मई, 1950 मान ली. सरकार की इस ज़िद का राज़ क्या है. सरकार क्यों देश के सर्वोच्च सेनाधिकारी को बेइज़्ज़त करने पर तुली हैजबकि यह बात दिन के उजाले की तरह सा़फ है कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 है. साक्ष्य इतने पक्के हैं कि सुप्रीम कोर्ट के तीन-तीन भूतपूर्व चीफ जस्टिस ने अपनी राय जनरल वी के सिंह के पक्ष में दी है. इसके बावजूद अगर विवाद जारी है तो इसका मतलब है कि दाल में कुछ काला है.

1.  सरकार की नाराज़गी की कई वजहें हैं. भारतीय सेना एक ट्रक का इस्तेमाल करती हैजिसका नाम है टेट्रा ट्रक. भारतीय थलसेना टेट्रा ट्रक का इस्तेमाल मिसाइल लांचर की तैनाती और भारी-भरकम चीजों के ट्रांसपोर्टेशन में इस्तेमाल करती है. इन ट्रकों का पिछला ऑर्डर फरवरी, 2010 में दिया गया थालेकिन ख़रीद में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायतें सामने आईं तो आर्मी चीफ वी के सिंह ने इस सौदे पर मुहर लगाने से इंकार कर दिया.  भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड यानी बीईएमएल लिमिटेड को जिस व़क्त इन ट्रकों की आपूर्ति का ठेका मिलातब भारतीय सेना की कमान जनरल दीपक कपूर के हाथ में थी.

2. दरअसलबीईएमएल द्वारा टेट्रा ट्रकों की ख़रीद का पूरा मामला संदेह के घेरे में है. एक अंग्रेजी अख़बार डीएनए के मुताबिक़रक्षा मंत्रालय की ओर से अभी तक दिए गए कुल ठेकों में भारी धनराशि बतौर रिश्वत दी गई है. डीएनए के मुताबिक़यह पूरा रैकेट 1997 से चल रहा है. बीईएमएल में उच्च पद पर रह चुके एक पूर्व अधिकारी के हवाले से यह भी ख़बर आई कि अभी तक कंपनी टेट्रा ट्रकों की डील से जुड़ा कुल 5,000 करोड़ रुपये तक का कारोबार कर चुकी है. यह कारोबार टेट्रा सिपॉक्स (यूके) लिमिटेड के साथ किया गया है. इसे स्लोवाकिया की टेट्रा सिपॉक्स एएस की सब्सिडियरी बताया जाता रहा है. बीईएमएल के इस पूर्व अधिकारी के मुताबिक़, 5,000 करोड़ रुपये के इस कारोबार में 750 करोड़ रुपये बीईएमएल एवं रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को बतौर रिश्वत दिए गए.

3.  बीईएमएल के एक शेयरधारक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता के एस पेरियास्वामी राष्ट्रपति के हस्तक्षेप और सीबीआई जांच की मांग कर चुके हैं. वह कहते हैंख़रीद के लिए जितनी रकम की मंजूरी दी जाती हैउसका कम से कम 15 फीसदी हिस्सा कमीशन में चला जाता है. ऊपर से नीचे तक सबको हिस्सा मिलता है. मैंने 2002 में कंपनी की एजीएम में यह मुद्दा उठाया थालेकिन इस पर चर्चा नहीं की गई. एक प्रतिष्ठित बिजनेस अख़बार ने यहां तक लिखा कि बीईएमएल की टेट्रा ट्रकों की डील को कारगर बनाने में जुटी हथियार विक्रेताओं की लॉबी ने आर्मी चीफ को आठ करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश भी की थीजिसे जनरल वी के सिंह ने ठुकरा दिया.

 अब सवाल यह उठता है कि क्या आर्मी चीफ पर इसलिए पद छोड़ने का दबाव हैक्योंकि उन्होंने टेट्रा डील पर दस्तख़त नहीं किए थेक्या बीईएमएल सेकेंड हैंड ट्रकों का आयात कर रही है और क्या स्लोवाकिया में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बंद हो गया हैक्या पुराने ट्रकों की मरम्मत को घरेलू उत्पादन के तौर पर दिखाया जा रहा हैरविंदर ऋषि कौन हैउसे इतने रक्षा सौदों का ठेका क्यों दिया जा रहा हैइस लॉबी के लिए सरकार में काम करने वाले लोग कौन हैंअगर सरकार इन सवालों का जवाब नहीं देती है तो इसका मतलब यही है कि आर्मी चीफ को ठिकाने लगाने के लिए मा़िफया और अधिकारियों ने मिलजुल कर जन्मतिथि का बहाना बनाया है.

4. जनरल वी के सिंह ने सेना के आधुनिकीकरण के लिए एक प्लान तैयार कियायह प्लान डिफेंस मिनिस्ट्री में लटका हुआ है. उन्होंने इस बीच कई ऐसे काम किएजिनसे आर्म्स डीलरों और बिचौलियों की नींद उड़ गई. सिंगापुर टेक्नोलॉजी से एक डील हुई थी. इस कंपनी की राइफल को टेस्ट किया गयाउसके बाद जनरल वी के सिंह ने रिपोर्ट दी कि यह राइफल भारत के लिए उपयुुक्त नहीं है. भारतीय सेना को नए और आधुनिक हथियारों की ज़रूरत है. इस ज़रूरत को देखते हुए वह अगले एक-दो सालों में भारी मात्रा में सैन्य शस्त्र और नए उपकरण ख़रीदने वाली है. ख़ासकरभारत इस साल भारी मात्रा में मॉडर्न असॉल्ट राइफलें ख़रीदने वाला है. भारत का सैन्य इतिहास यही बताता है कि आर्म्स डील के दौरान जमकर घूसखोरी और घपलेबाज़ी होती है. जनरल वी के सिंह सेना के अस्त्र-शस्त्रों की ख़रीददारी में पारदर्शिता लाना चाहते हैं. वह एक ऐसा सिस्टम बनाना चाहते हैंजिसमें सैनिकों को दुनिया के सबसे आधुनिकतम हथियार मिलेंलेकिन कोई बिचौलिया न हो और न कहीं किसी को दलाली खाने का अवसर मिले

5. जबसे वह सेनाध्यक्ष बने हैंतबसे भारतीय सेना पर कोई घोटाले या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा. भ्रष्टाचार के जो पुराने मामले थेउन्हें न स़िर्फ निपटाया गयाबल्कि उन्होंने आदर्श जैसे घोटाले की जांच में एजेंसियों की मदद की. आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के ज़मीन घोटाले में जनरल वी के सिंह ने मुस्तैदी दिखाई. सेना की कोर्ट ऑफ इनक्वायरी का गठन कियाजिसमें दो पूर्व सेनाध्यक्षों-जनरल दीपक कपूर और जनरल एन सी विज सहित कई टॉप अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया. इन सबका नतीजा यह हुआ कि आर्म्स डीलरों की लॉबीअधिकारीज़मीन मा़िफया और ऐसे कई सारे लोग जनरल वी के सिंह के ख़िला़फ लामबंद हो गए और उनकी जन्मतिथि के विवाद को हवा दी.

6. जबसे वह सेनाध्यक्ष बने हैंतबसे भारतीय सेना पर कोई घोटाले या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा. भ्रष्टाचार के जो पुराने मामले थेउन्हें न स़िर्फ निपटाया गयाबल्कि उन्होंने आदर्श जैसे घोटाले की जांच में एजेंसियों की मदद की. आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के ज़मीन घोटाले में जनरल वी के सिंह ने मुस्तैदी दिखाई. सेना की कोर्ट ऑफ इनक्वायरी का गठन कियाजिसमें दो पूर्व सेनाध्यक्षों-जनरल दीपक कपूर और जनरल एन सी विज सहित कई टॉप अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया. इन सबका नतीजा यह हुआ कि आर्म्स डीलरों की लॉबीअधिकारीज़मीन मा़िफया और ऐसे कई सारे लोग जनरल वी के सिंह के ख़िला़फ लामबंद हो गए और उनकी जन्मतिथि के विवाद को हवा दी.

7. उन्होंने सेना में मीट की सप्लाई करने वाले मीट कारटेल का स़फाया कर दियावे लोग जो मीट सप्लाई करते थेवह ठीक नहीं था. जनरल वी के सिंह ने इसके लिए ग्लोबल टेंडर की शुरुआत कीताकि दुनिया का सबसे बेहतर मीट सेना के जवानों को मिले.

8. सेनाध्यक्ष बनते ही उन्होंने सेना में मौजूद भ्रष्टाचार और मा़िफया तंत्र को ख़त्म करना शुरू कर दिया. लगता हैयह बात नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक में बैठे अधिकारियों को ख़राब लगी. देश में सरकारी तंत्र कैसे चल रहा हैयह एक स्कूली बच्चे को भी पता है. लगता हैदेश में जो ईमानदार और आदर्शवादी लोग हैंउनके लिए सरकारी तंत्र में कोई जगह नहीं रह गई है. उन्हें ईनाम मिलने की जगह सज़ा दी जाती है और जलील किया जाता है.

क्या इस देश में अलग-अलग नागरिकों के लिए अलग-अलग क़ानून हैं या फिर यह मान लिया जाए कि इस देश को मा़िफया सरगना और सरकार में बैठे उनके दलाल चला रहे हैं. पूरे देश की जनता एक ऐसे घिनौने वाक्ये से रूबरू हो रही हैजिसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पिछले सात सालों में जिस तरह देश में संवैधानिक और राजनीतिक संस्थानों की बर्बादी हुई हैवैसी पहले कभी नहीं हुई. हैरानी की बात यह है कि सरकार एक तऱफ यह कह रही है कि थल सेनाध्यक्ष झूठ बोल रहे हैं और दूसरी तऱफ वह उनसे डील भी करती है कि उन्हें किसी देश का राजदूत या किसी राज्य का गवर्नर बना दिया जाएगा. यही नहींयह धमकी भी दी जा रही है कि अगर वह कोर्ट गए तो उन्हें सेनाध्यक्ष के पद से ब़र्खास्त कर दिया जाएगा.

इसलिए जनरल वी के सिंह को ख़ुद के लिए नहींबल्कि इस संस्था की गरिमा बचाने के लिए कोर्ट में जाना चाहिए. अगर वह नहीं गए तो इसका मतलब यही है कि देश के माफियाअधिकारी और नेता जब चाहेंगिरोह बनाकर भविष्य के सेनाध्यक्षों को नीचा दिखा सकते हैंउन्हें मनचाहा काम कराने के लिए मजबूर कर सकते हैं. जनरल वी के सिंह लड़ रहे हैंयह अच्छी बात है. हो सकता हैभविष्य में किसी दूसरे ईमानदार सेनाध्यक्ष के साथ फिर ऐसा होलेकिन वह जनरल वी के सिंह की तरह लड़ भी न सके.

क्यों लोगों को गाँधी पसंद नहीं है ?



1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गाँधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएंकिन्तु गाँधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गाँधी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं कियावरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दीइसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6. गाँधी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजीमहाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7. गाँधी जी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दियावहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा थाअत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला थाकिन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित कियाकिन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्धस्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दियाउससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया।

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित कियाजबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी...मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा....फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया.... और वो हिंदू--- गाँधी मरता है तो मरने दो ---- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे...,,, रिपोर्ट --- जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट..... फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंहराजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थीसुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थीउससे ये तीनोंखासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।

उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिएअगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता।



पढ़िये 'गांधी बेनकाब - हंसराज रहबर'  और 'गाँधी वध क्यों'?

Whistle Blower Protection Bill, 29 March 2012, अरविंद केजरीवाल



      लगता है इस काँग्रेस सरकार को और इस देश के सभी सांसदों को लगता है भारत एक हमेशा ही सोने वाले मूर्खों का देश है। हम कुछ लोग शर्म से ये सच स्वीकारते हैं और कुछ गर्व से। उदाहरण देखियेमूर्ख जनता के बुद्धिमान सांसदों का करतब -- 
अरविंद केजरीवाल के ही शब्दों में -- "29 मार्च 2012 को काँग्रेस पार्टी की भारत सरकार ने बिना चर्चा के कुछ ही मिनटों में दो बिल पास किए। उनमे से एक है Whistle Blower Protection Bill ये भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को संरक्षण देने की वजाय उनको ज्यादा प्रताड़ित करने के लिए बनाया गया है। अभी तक अगर कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठता था तो वो कहीं जाके कम से कम शिकायत कर लेता था। उसके ऊपर फिर माफिया तरह तरह से उसे प्रताड़ित करते थे और कई बार तो उनकी हत्या कर दी जाती थी। इससे लोगों को संरक्षण देना तो दूरइस कानून मे लिखा है यदि कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करेगायदि उसकी शिकायत में पर्याप्त सबूत नहीं होंगे तो उसे दो साल के लिए जेल में डाल दिया जाएगा। तो ये भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सरक्षण देने के लिए बनाया है कि उनकी आवाज कुचलने के लिए बनाया है?

सरकार की नियत में खोट हैसरकार अच्छे बिल लाना ही नहीं चाहती। सरकार जो भी कदम उठा रही हैउससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है और दुख की बात ये है की संसद भी सरकार के ऐसे लाये हुये बिलों पर अपना ठप्पा लगा कर पास करती जा रही है।"





 बहुत संभव है कि कुछ दिनों में ये vedio या blog बंद हो जाए।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (3): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (3)
देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख 

स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे

भारतीय संविधान में नौवां संशोधन-1960

सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ के सर्वसम्मत दिशा निर्देश के बाद प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के पास अब कोई दूसरा मार्ग नहीं बचा था। अन्ततोगत्वानेहरू-नून समझौता 1958 को लागू कराने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया पूर्ण की गई तथा संविधान संशोधन 28 दिसंबर, 1960 को सम्पन्न हुआ। इसके बाद ही असमपंजाबपश्चिम बंगाल तथा त्रिपुरा राज्यों की सीमाओं के निर्धारण तथा भारतीय भूमि के आदान-प्रदान (प्रत्यावर्तन) का मार्ग खुला। संविधान के इस नौवें संशोधन के कारण ही भारतीय भूमि के किसी हिस्से को दूसरे देश को हस्तांतरित करने का अधिकार भारत सरकार को प्राप्त हो सका और नेहरू नून-समझौता 1958 लागू होने की पृष्ठभूमि तैयार हुई। सर्वोच्च न्यायालय के इन ऐतिहासिक निर्देशों ने भारतीय राजनीतिक इतिहास में सदैव के लिए एक उदाहरण स्थापित कर दिया कि, 'बिना संविधान संशोधन किये भारत की कोई भी भूमि किसी दूसरे देश को नहीं दी जा सकती।सरकार को ऐसा करने को बाध्य करने वाले भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद तथा संविधान पीठ के सभी विद्वान न्यायाधीशों के प्रति यह देश सदैव आभारी रहेगा।
क्रमश:

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (4): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख 

स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे

निर्णय आज भी प्रभावी
सर्वोच्च न्यायालय (ए.आई.आर.1960) के निर्देश आज भी प्रभावी हैं। यह निर्णय भारतीय राजनीति के इतिहास के लिए आज भी एक मील का पत्थर बना हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय ने बहुमत वाली सरकारों को भी निरंकुश होकर अपनी मर्यादाओं और अधिकारों का उल्लंघन न करने को बाध्य किया है। भारत की भूमि को किसी दूसरे देश को देने का प्रश्न सरकार और कुछ नौकरशाहों की इच्छा पर ही निर्भर न रहकर संविधान संशोधन के बाद ही संभव हो सकेगा। कोई भी ऐसा समझौताजिसमें भारत संघ की पूर्व निर्धारित भूमि यदि कम होती है और भारत संघ का क्षेत्रफल कम होता है तो उस सरकार को संविधान की धारा 368 (संविधान संशोधन) की प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य होगा। संविधान में आवश्यक संशोधन के बाद ही भारत की भूमि किसी अन्य देश को दी जा सकती है। बाद के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय के अन्य निर्णयों ने भी सर्वोच्च न्यायालय (1960) के निर्देशों को और अधिक स्पष्ट और दृढ़ कर दिया है। बेरूबाड़ी मामले में ही एक बार फिर से (ए.आई.आर. 1966, सर्वो. न्यायालय 644) तथा कच्छ के रन में सीमा विवाद पर (ए.आई.आर. 1969, सर्वो. न्यायालय-783) निर्णयों ने यह स्पष्ट किया है कि जब कभी भारत की भूमि को किसी अन्य देश को देने का विषय उपस्थित होगा तब उसके लिए संविधान में संशोधन आवश्यक होगा।

क्रमश:

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (5): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (5)

देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख 

स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे

वर्तमान भारत-बंगलादेश समझौते को स्थिति
सितम्बर, 2011 को ढाका में हुए भारत-बंगलादेश समझौते के सम्बंध में केन्द्र सरकार का यह दायित्व है कि वह अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए देश की जनता के सामने सभी तथ्यों को उजागर करे। कहां पर कौन-सी भूमि हम बंगलादेश को दे रहे हैं और कहां कौन-सी भूमि हमको प्राप्त हो रही हैयह बताए। 'एन्क्लेव्सतथा अनधिकृत कब्जों वाली भूमि का पूरा और व्यापक ब्यौरा संसद के पटल पर रखा जाए तथा सभी संबंधित मुद्दों पर व्यापक चर्चा हो। तभी यह बात साफ हो पायेगी कि 'भारतीय एन्क्लेव्सकी कितनी अधिक भूमि बंगलादेश के पास चली जाएगी तथा 'एडवर्स पजैसनकी स्थितियों में परिवर्तन के बाद भारत को कुल मिलाकर कितनी भूमि से हाथ धोना पड़ेगा। भारतीय क्षेत्रफल का किसी भी प्रकार से कम होना न तो राष्ट्रहित में होगा और न ही संवैधानिक दृष्टि से ही उचित कहा जाएगा। भारतीय संसद में व्यापक चर्चा के उपरांत यदि ऐसा लगता है कि बंगलादेश के साथ मित्रवत संबंधों को बनाये रखने के लिए 11,000 एकड़ भूमि खोना देश हित में हैतो भी भारत सरकार को अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह संविधान में संशोधन करके ही करना होगा।
क्रमश:

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (6): देश की भूमि देने से पहले संविधान संशोधन आवश्यक


सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (5)

देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
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स्रोत: Panchjanya - Weekly      तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे

इंदिरा-मुजीब समझौते की स्थिति
ध्यान में रखने लायक एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सितम्बर, 2011 का यह समझौता 1974 के इंदिरा-मुजीब समझौते की अगली कड़ी के रूप में हुआ है। इंदिरा-मुजीब समझौता (1974) को उसी वर्ष दोनों देशों की संसद में पारित कराकर एक-दूसरे को देना था। समझौते की हस्ताक्षरित प्रतियां एक-दूसरे देश को सौंपने के दिन से ही वह समझौता प्रभावी माना जाने वाला था। बंगलादेश की संसद ने इस समझौते को 28 नवम्बर, 1974 को ही पारित कर दिया था। किंतु भारतीय जनमानस के दवाब के भय से भारत की कोई भी सरकार आज तक उस समझौते को संसद में चर्चा के लिए नहीं ला सकी। विगत 37 वर्षों में उस समझौते के विषय पर भारतीय संसद में कभी भी कोई चर्चा नहीं हुई है। 37 वर्षों तक प्रतीक्षा के बाद भी भारतीय संसद में पारित न होने वाले इस इंदिरा- मुजीब समझौते (1974) का भारत की जनता तथा भारतीय संसद के लिए क्या मूल्य हैसन् 1974 के जिस समझौते को भारतीय संसद ने पारित न किया होभारत के राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर न किये हों और न समझौते की अनुमोदित प्रतियां का अभी तक दोनों देशों के मध्य आदान-प्रदान ही हुआ होउसके ऊपर भारत सरकार इतना आगे बढ़कर अपनी 11 हजार एकड़ भूमि छोड़ने को क्यों तैयार हुई हैसरकार जानबूझकर इंदिरा-मुजीब समझौते को संसद में पारित कराने के लिए अभी तक नहीं लाई हैक्योंकि उसके अंदर अनेक समस्याओं के साथ साथ एक खतरनाक बात यह भी है कि, 'भारतीय एन्क्लेव्स की अदला-बदली के समय बंगलादेश को जाने वाली अपनी अधिक भूमि के बदले में भी भारत अतिरिक्त भूमि अथवा किसी प्रकार के हर्जाने की मांग नहीं करेगा।'
श्रीमती इंदिरा गांधी को भारतीय भूमि के साथ ऐसा समझौता करने का अधिकार किसने दे दिया थाक्या इंदिरा गांधी तथा उनके सहयोगी अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय (1960) के निर्देशों से अनभिज्ञ थेक्या इंदिरा गांधी यह नहीं जानती थीं कि बिना संविधान संशोधन के 'भारतीय एन्क्लेव्सकी हजारों एकड़ भूमि इस प्रकार किसी अन्य देश को नहीं दी जा सकतीइंदिरा गांधी ने वही गलती की जो 1958 में उनके पिता पं. जवाहरलाल जी ने की थी। यह समझौता न केवल असंवैधानिक था वरन् पूर्ण रूप से राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध भी था। भारत सरकार यह बात भली प्रकार जानती है कि इस प्रकार का समझौता जब भी संसद के पटल पर आएगा तब देशभर में इसके ऊपर चर्चा और बहस उग्र होती जाएगी। सरकार संसद की बहस से भयभीत है और किसी भी प्रकार से गोपनीय तरीके से समझौता करना चाहती है। 'भारतीय एन्क्लेव्सकी 10050 एकड़ अधिक जमीन बंगलादेश को जाएगी तो सरकार इसके पीछे क्या तर्क देगीयह सरकार की समझ में नहीं आ पा रहा है। सरकार यह ध्यान में रखे कि यदि देश की भूमि किसी दूसरे देश को जाएगी तो संविधान में संशोधन की प्रक्रिया अपनानी ही होगी।
इंदिरा-मुजीब समझौता (1974) अथवा मनमोहन-शेख हसीना समझौता (2011) के द्वारा भारत की भूमि किसी दूसरे देश को नहीं दी जा सकती। देश की सरकार और संसद के सदस्यों को देशहित में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करना चाहिए। महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल को भी इस भारत-बंगलादेश समझौते पर हस्ताक्षर करने से पूर्व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया का संज्ञान लेते हुए सरकार को निर्देशित करना चाहिए। यही देश के हित में होगा।


यदि देश का कोई भी हिस्सा किसी दूसरे देश को दिया जाएगा तो यह कार्य संविधान की धारा 368 के द्वारा संविधान में परिवर्तन करने के बाद ही संभव हो सकेगा। इंदिरा-मुजीब समझौता (1974) अथवा मनमोहन-शेख हसीना समझौता (2011) के द्वारा भारत की भूमि किसी दूसरे देश को नहीं दी जा सकती। सरकार संसद की बहस से भयभीत है और किसी भी प्रकार से गोपनीय तरीके से यह समझौता करना चाहती है।
जय हिन्द जय भारत

तथाकथित महात्मा के इस देश पर उपकार: तुष्टीकरण की शुरुआत



5 मार्च, 1931 को इर्विन के साथ अपने समझौते के क्षण से ही गांधी जी मुस्लिम प्रश्न का हल खोजने में जुट गये थे। उन दिनों बनारसकानपुरमिर्जापुर आदि अनेक नगरों में भयानक हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। कानपुर के मुसलमानों ने भगत सिंह की फांसी के विरोध में प्रदर्शन में शामिल होने से मना कर दियाजिससे दंगा भड़क उठा। हिन्दू मुस्लिम एकता के बड़े प्रचारक और कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी की एक मुस्लिम मुहल्ले में हत्या कर दी गयी। इस प्रक्षोभक वातावरण में गांधी जी की प्रेरणा से कराची के कांग्रेस अधिवेशन के अंत में 1 अप्रैल को कराची में ही जमीयत उल उलेमा का अधिवेशन रखा गयाजिसमें गांधी जी ने कानपुर के दंगों के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहरायाउसके लिए शर्मिंदगी प्रगट कीउनकी ओर से मुसलमानों से क्षमायाचना कीउलेमा से मुस्लिम समस्या को हल करने की प्रार्थना की गई। महादेव देसाई ने अपनी डायरी के 12वें खंड में गांधी जी के उस भाषण को विस्तार से दिया है। गांधी जी ने कहा, 'इस बारे में मैं उलेमा की कदमबोसी (चरण चूमकर) करके उनकी मदद चाहता हूं। अगर हम इसमें कामयाब नहीं हुए तो गोलमेज सम्मेलन में जाना लगभग बेकार-सा होगा। मैं नहीं चाहता कि यह हुकूमत पंच बनकर हमारी आपसी लड़ाई का फैसला करे। उलेमा से मैं नम्रता से कहूंगा कि वे इस बारे में बहुत कुछ मदद कर सकते हैं। कांग्रेस और हिन्दू की हैसियत से मैं कहता हूं कि मुसलमान जो चाहेंमैं देने को तैयार हूं। मैं बनियापन नहीं करना चाहता हूं कि आप जिस चीज की ख्वाहिश करते होंउसे एक कोरे कागज पर लिख दीजिए और मैं उसे कबूल कर लूंगा। जवाहर लाल ने भी जेल से यही बात कही थी।

वाह रे इंसाफवाह रे तुष्टीकरणगलत को गलत न कहना कायरता नहीं तो क्या हैनिरपराध को दोषी बताना स्वयम में एक अपराध नहीं तो क्या है? ... वाह रे गांधीत्ववाह रे महात्म्यवाह रे देश भक्त।

पृथक मताधिकार और द्विराष्ट्रवाद के प्रथम प्रणेता: गांधी


मुस्लिम समाज की ओर से इस व्यापक विरोध से चिंतित होकर गांधी जी ने 9 से 11 जून, 1931 तक बम्बई में आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के सामने प्रस्ताव रखा कि साम्प्रदायिक वैमनस्य की समस्या का कोई हल न निकल पाने के कारण अब मुझे लंदन जाने का विचार त्याग देना चाहिए। उन्हीं दिनों गांधी जी पंजाब के दौरे पर गए। वहां लुधियाना में गांधी जी के निवास पर 10-15 हजार लोगों की भीड़ जमा हो गई। मास्टर तारा सिंह की अध्यक्षता वाली सिख लीग ने बार-बार तार देकर गांधी जी को पंजाब बुलाया था। उसके अध्यक्ष मास्टर तारा सिंह से गांधी जी ने पूछा कि मुझे क्यों बुलाया। तारा सिंह ने कहा कि 'राष्ट्रीय स्तर पर आप जो करवाएं हम करने को तैयार हैंपर आप तो मुसलमानों को सब कुछ देने की सलाह देते हैं। हम लोगों को यह सब मुसलमानों के कौमी दबाव के सामने झुकने जैसा लगता हैजो हम सहन नहीं कर सकते। साम्प्रदायिक दृष्टि से लिए गये इस निर्णय को हम स्वीकार नहीं कर सकते।इसके उत्तर में गांधी जी ने कहा 'यदि एक पूरी कौम किसी वस्तु के बगैर संतुष्ट होने को तैयार न हो और हमें उनके साथ ही रहना हो तो उनकी बात मानकर ही तो उनको जीता जा सकता है नदूसरा उपाय क्या है?' सिखों ने कहा, 'दूसरा उपाय यह है कि उनके समान दबाव डालकर वे जो भी मांगेंगेवही हम भी मांगेंगे।गांधी जी ने कहा, 'एक कौम को उसकी मांग के अनुसार दे देने में ही मैं राष्ट्र की एकता मानता हूं। आप राष्ट्रीय ध्वज के लिए भी आपत्ति करते हैं। आपको अपना रंग राष्ट्रीय ध्वज में चाहिए। आज का राष्ट्रीय ध्वज मेरी कल्पना के अनुरूप है। उस ध्वज में पूरे देश का त्याग सम्मिलित है। फिर भी एक कौम के संतोष के लिएआपके लिए ही मैं उसे बदलने के लिए तैयार हुआ हूंतो उसी प्रकार मुस्लिम कौम के लिए मैं आपको त्याग करने के लिए क्यों नहीं कह सकता? (महादेव देसाई की डायरीखंड 12, पृ.253-254)
क्या सचमुच गांधी जी मानते थे कि मुसलमानों की पृथक मताधिकार की मांग मान लेने से भारत में राष्ट्रीय एकता स्थापित होगीयदि ऐसा ही था तो कांग्रेस के नरमदलीय नेतृत्व ने भी 1909 के एक्ट में मुसलमानों को दिये गये पृथक मताधिकार के निर्णय को 1916 के लखनऊ समझौते तक स्वीकार क्यों नहीं कियाऔर 1916 में स्वीकार किया तो भी एक अल्पकालीन आपद् धर्म के रूप मेंपृथक मताधिकार के विभाजनकारी दुष्परिणाम को ध्यान में रखकर लाला लाजपत राय ने 1924 नवम्बर- दिसंबर में अंग्रेजी दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित अपनी लम्बी लेखमाला में भविष्यवाणी की थी कि यदि पृथक मताधिकार बना रहा और मुस्लिम राजनीति का चरित्र वही रहा जो आज हैतो भारत का विभाजन अवश्यंभावी है। तभी उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी भारत में चार मुस्लिम राज्यों की स्थापना की चेतावनी दे दी थी। पर तब से अब तक भारतीय राजनीति का चरित्र बहुत बदल चुका था और लंदन पहुंचते ही गांधी जी ने यह कहना आरंभ कर दिया कि ऐतिहासिक कारणों से मैं मुसलमानों और सिखों के लिए पृथक मताधिकार देने को तैयार हूं। इसका अर्थ हुआ कि जाने या अनजाने उन्होंने जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया।
औए ये स्वीकार कर गांधी ने भारत को दुर्दशा की ओर धकेलने के लिए पहला धक्का दिया।
Source: पांच्यजन्य

कौन राष्ट्रपिता? Kaun Rastrpita?


महान आर्यावर्त (भारत देश) का कोई सामान्य मनुष्य पिता भी हो सकता हैहम समझ नहीं सकते पर पढाया हमें यही गया था। कि कोई है जिसे हम राष्ट्रपिता कहते हैं जिसने स्वं ही अपने तथाकथित पुत्र के कई टुकड़े कर दिए तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का सहारा और मुस्लिम तुष्टीकरण की तलवार लेकर। लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जिस दिन इसी देश पर एक बालिका रानी लक्ष्मीबाई ने प्रश्नचिन्ह लगा दिया इस उपाधि पर ही।


एक छोटी बच्ची ने तीन मंत्रालयों को हिलाया --

राष्ट्रपिता से संबंधित जो आदेश कभी पारित ही नहीं हुआउसे तलाशता रहा पीएमओ

- गृह मंत्रालय और केंद्रीय अभिलेखागार ने भी छानी खाक 

लखनऊ, 3 अप्रैल (संवाद सूत्र) : जिज्ञासा उम्र की मोहताज नहीं होती। छोटी सी उम्र वाली ऐश्वर्या पराशर के मस्तिष्क में भी सवालों का ज्वार-भाटा जोर मारता रहता है। हद तो तब हो गई जब उसके सवालों का जवाब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ)गृह मंत्रालय और केंद्रीय अभिलेखागार, तीनों नहीं दे सके। 'सूचना का अधिकार अधिनियम-2005' (आरटीआइ) के अंतर्गत उसने 'भारत सरकार के उस आदेश की छायाप्रति मांगीजिसके अनुसार महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता घोषित किया गया हो'


दरअसल बात यह है कि महात्मा गांधी किसी आदेश के तहत 'राष्ट्रपिताघोषित नहीं हुए थे। पहली बार नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें रेडियो सिंगापुर पर छह जुलाई 1944 को दिए भाषण में राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। इसके बाद सरोजनी नायडू और पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी अपने संबोधनों में बापू को 'राष्ट्रपिताकहकर संबोधित किया। इन नेताओं द्वारा बापू को दी गई यह उपाधि जनसामान्य ने स्वीकार की। जब गांधी जी भारत सरकार के किसी आदेश द्वारा राष्ट्रपिता नहीं बने तो आदेश की छायाप्रति तो मिलनी ही नहीं थी और न ही मिली। सूचना से संबंधित जानकारी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालयगृह मंत्रालय और केंद्रीय अभिलेखागार तीनों लगे रहे पर जिम्मेदारों को समझ में नहीं आया कि जवाब क्या दिया जाए। उन्होंने उत्तर दिया कि इस प्रकार के किसी कागज की छायाप्रति मौजूद नहीं है। वे यह नहीं कह सके कि इस प्रकार का आदेश कभी पारित ही नहीं हुआ। ऐसा कहते भी तब नजबकि उन्हें खुद जानकारी होती। इस अंधी दौड़ में गृह मंत्रालयपीएमओ और केंद्रीय अभिलेखागार की तो फजीहत हुई हीसाथ ही इस देश के इतिहास के विषय में उनकी जानकारी की भी पोल खुल गई। ऐसा तब है जबगांधी नाम जपते हुए चलने वाली कांग्रेस की सरकार ही केंद्र में है।


ऐसा नहीं है कि ऐश्वर्या की आरटीआइ पर विभाग पहली बार बगले झांक रहा हो। इससे पहले भी 2009 में उसने आरटीआइ का प्रयोग किया था। उस समय उसने मुख्यमंत्री कार्यालय में आरटीआइ के माध्यम से पूछा था कि विद्यालय के आसपास जमा गंदगी से यदि कोई विद्यार्थी बीमार हो जाता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगाइसका कोई जवाब नहीं मिलाहालांकि विद्यालय के आसपास की जमीन पर कूड़ा न डालने के निर्देश दिए गए और वह जमीन विद्यालय के सिपुर्द कर दी गई। अब उस जमीन पर विद्यालय द्वारा बनाया गया एक पुस्तकालय है।


किताब ने किया था प्रेरित: कक्षा छह की छात्रा ऐश्वर्या बताती हैं कि वह इतिहास की किताब में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का पाठ पढ़ रही थीं। उसमें महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया गया था। जिज्ञासा हुई कि कैसे वह राष्ट्रपिता बनेमाता-पिता से पूछ गया तो उनके पास जवाब नहीं था। विद्यालय से भी उत्तर नहीं मिला। ऐसे में आरटीआइ डालने का सुझाव उनकी मां ने दियाजो खुद आरटीआइ एक्टिविस्ट हैं।


पॉलीथिन मुक्त हो देश: दस वर्षीय ऐश्वर्या की तमन्ना है कि देश पॉलीथिन मुक्त हो। अभी वह अपनी परीक्षाओं में व्यस्त हैं। बाद में देशवासियों से पॉलीथिन प्रयोग न करने की अपील कर एक अभियान छेड़ने की तैयारी में हैं। ऐश्वर्या बताती हैं कि उनको गणित विषय सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। इसके अतिरिक्त खाली समय में वह अपने भाइयों राज (3) व यश (1) के साथ खेलती हैं। नाचना और गाना उनका शौक है। हालांकि वह कहीं भी इसकी विधिवत शिक्षा नहीं ले रही हैं।

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